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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - पच्चीसवाँ अध्ययन commomeonecommommonommencem nsion सामग्री के द्वारा जिस आत्मा में भय रूप बाह्य और राग द्वेष रूप अंतरंग मल को दूर करके अपने को सर्वथा निर्मल बना लिया है, उसी को यथार्थ रूप में ब्राह्मण कहते हैं। यहाँ पर इतना. स्मरण रहे कि जैसे संशोधित स्वर्ण अपने अपूर्व पर्याय को धारण कर लेता है उसी प्रकार कषाय मल से रहित हुआ आत्मा अपूर्व गुण को धारण करने वाला हो जाता है। तवस्सियं किसं दंतं, अवचिय-मंस-सोणियं। सव्वयं पत्तणिव्वाणं, तं वयं बूम माहणं ॥२२॥ कठिन शब्दार्थ - तवस्सियं - तपस्वी, किसं - कृश, दंतं - दान्त, अवचिय-मंससोणियं - जिसका रक्त और मांस अपचित हो गया है, सुव्वयं - सुव्रती, पत्तणिव्वाणं - निर्वाण प्राप्त। भावार्थ - उग्र तप का आचरण कर जिसने अपना शरीर कृश (दुबला-पतला) कर डाला है और रक्त तथा मांस सूखा डाला है जिसने पांचों इन्द्रियों का दमन किया है निर्वाण प्राप्तकषायाग्नि को शान्त कर जो सुव्रत वाला-श्रेष्ठ व्रत वाला है। उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। तसे पाणे वियाणित्ता, संगहेण य थावरे। जो ण हिंसइ तिविहेणं, तं वयं बूम माहणं ॥२३॥ कठिन शब्दार्थ - तसे य थावरे पाणे - त्रस और स्थावर प्राणियों को, वियाणित्ता - सम्यक् प्रकार से जान कर, तिविहेणं - मन, वचन, काया से, ण हिंसइ - हिंसा नहीं करता है। . भावार्थ - जो त्रस और स्थावर प्राणियों को संक्षेप से और विस्तार से भली प्रकार जान कर तीन करण तीन योग से उनकी हिंसा नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। विवेचन - जो त्रस और स्थावर प्राणियों की मन, वचन और काया से हिंसा करता नहीं तथा मन, वचन, काया से हिंसा करवाता नहीं और हिंसा करने वालों को मन, वचन, काया से अनुमोदन करता नहीं। वह माहन (मुनि) कहलाता है। यह नवकोटि पच्चक्खाण कहलाता है। इस प्रकार तीन करण तीन योग से जीवों की रक्षा रूप दया करने वाला तथा १८ पापों का त्यागी मुनि कहलाता है। कोहा वा जइ वा हासा, लोहा वा जइ वा भया। मुसं ण वयइ जो उ, तं वयं बूम माहणं ॥२४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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