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प्रवचन-माता - वचन गुप्ति का स्वरूप 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - ये पाँच समितियाँ संक्षेप से कही गई हैं। अब इसके पश्चात् तीन गुप्तियों का अनुक्रम से वर्णन करूंगा।
मनोगुप्ति का स्वरूप सच्चा तहेव मोसा य, सच्चामोसा तहेव य। चउत्थी असच्चमोसा य, मणगुत्ती चउव्विहा॥२०॥
कठिन शब्दार्थ - सच्चा - सत्या, मोसा - मृषा, तहेव - तथैव, सच्चामोसा - सत्यामृषा-सत्य और झूठ से मिश्र, चउत्थी - चौथी, असच्चमोसा - असत्यामृषा।
भावार्थ - सत्या, मृषा, सत्यामृषा और चौथी असत्यामृषा। इस प्रकार मनोगुप्ति चार प्रकार की कही गई है।
संरंभ-समारंभे, आरंभे य तहेव य। मणं पवत्तमाणं तु, णियत्तेज जयं जई॥२१॥
कठिन शब्दार्थ - संरंभ समारंभे - सरम्भ समारम्भ, आरंभे - आरम्भ में, मणं - मन को, पवत्तमाणं - प्रवर्तमान-प्रवृत्त होते हुए, णियत्तेज्ज - निवृत्त करे।
भावार्थ - संरंभ में, समारम्भ में और आरम्भ में प्रवृत्ति करते हुए मन को यति-साधु यतनापूर्वक हटा लेवे।
विवेचन - सरंभ अर्थात् मानसिक संकल्प, जैसे - 'मैं ऐसा ध्यान करूँगा जिससे वह मर जायगा।' मानसिक ध्यान द्वारा दूसरे को पीड़ा पहुँचाना या उच्चाटन आदि करने वाला ध्यान करना मन-समारंभ है। मानसिक ध्यान द्वारा दूसरे के प्राणों को अत्यन्त क्लेश पूर्वक हरण करना मन-आरंभ है। इन अशुभ संकल्पों से मन को हटाना चाहिये।
वचन गुप्ति का स्वरूप सच्चा तहेव मोसा य, सच्चामोसा तहेव य। चउत्थी असच्चमोसा य, वयगुत्ती चउव्विहा॥२२॥
भावार्थ - सत्या, मृषा, सत्यामृषा और चौथी असत्यामृषा। इस प्रकार वचनगुप्ति चार प्रकार की कही गई है।
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