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उत्तराध्ययन सूत्र - चौबीसवाँ अध्ययन
वित्थिपणे दूरमोगाढे, णासण्णे बिलवज्जिए ।
तसपाण - बीयरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे ॥ १८ ॥
कठिन शब्दार्थ - परस्स - दूसरों का, अणुवघाइए - अपघात से रहित, समे अज्झसिरे - पोली न हो, अचिरकाल कयम्मि- कुछ समय पहले निर्जीव हुई हो, वित्थिपणेविस्तीर्ण, दूरमोगाढे - नीचे दूर तक अचित्त, णासण्णे - ग्रामादि के समीप न हो, बिलवज्जिएबिलों से रहित, तसपाणबीयरहिए - त्रस प्राणी और बीजों से रहित, उच्चाराईणि मल आदि का, वोसिरे - त्याग करे ।
भावार्थ - अब स्थण्डिल के दस विशेषण कहे जाते हैं- दूसरों का १. जहाँ स्वपक्ष और परपक्ष वाले किसी का आना-जाना न हो और न दृष्टि पड़ती हो, २. जहाँ संयम की अर्थात् छहकाय जीवों की विराधना न हो तथा आत्मा की और संयम की भी विराधना न हो, ३. जहाँ ऊंची-नीची भूमि न हो अर्थात् समतल भूमि हो ४. जहाँ पोलार न हो या घास और पत्तों आदि से ढंकी हुई न हो अर्थात् साफ खुली हुई भूमि हो और ५. जो भूमि दाह आदि से थोड़े काल पहले अचित्त हुई हो ६. जो भूमि विस्तृत हो अर्थात् कम से कम एक हाथ लम्बी चौड़ी हो ७. जहाँ कम से कम चार अंगुल नीचे तक भूमि अचित्त हो ८. जहाँ गांव, बगीचा आदि अति निकट न हो ६. जहाँ चूहे आदि का बिल न हो १०. जहाँ बेइन्द्रियादि त्रस जीव तथा शालि आदि बीज न हों। इन दस विशेषणों वाले स्थण्डिल में मल-मूत्रादि का त्याग करे ।
विवेचन - परिष्ठापन योग्य दस स्थण्डिल भूमियों के दो तीन आदि सांयोगिक भंग करें तो कुल १०२४ भंग होते हैं। इन दसों में से अंतिम भंग पूर्ण शुद्ध है, ऐसी स्थण्डिल भूमि पर परिष्ठापन करना उचित है।
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तीन गुप्तियों का वर्णन
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★ इस प्रकार पंचम समिति का सम्यक् पालन नहीं करने से संयम की विराधना और प्रवचन की अवहेलना होती है ।
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सम,
एयाओ पंच समिईओ, समासेण वियाहिया ।
इत्तो य तओ गुत्तीओ, वोच्छामि अणुपुव्वसो ॥ १६ ॥
कठिन शब्दार्थ - समासेण - संक्षेप से, वियाहिया - कही गई है, वोच्छामि वर्णन करूंगा, अणुपुव्वसो - अनुक्रम से ।
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