________________
६८
उत्तराध्ययन सूत्र - चौथा अध्ययन ********************************************kakkakkkkkkkkkar* वाला, पया - जीव की, पेच्च - परलोक, इहं - इस, लोए - लोक में, कडाण - किये हुए, कम्माण - कर्मों का फल भोगे बिना, मुक्ख - मोक्ष, ण अत्थि - नहीं है। . ____ भावार्थ - जिस प्रकार संधिमुख पर सेंध लगाते हुए पकड़ा हुआ पापात्मा चोर अपने ही किये हुए कर्मों से दुःख पाता है, उसी प्रकार जीव इसलोक और परलोक में अपने किये हुए अशुभ कर्मों से दुःख पाते हैं, क्योंकि फल भोगे बिना किये हुए कर्मों से छुटकारा नहीं होता।
विवेचन - जैसे चोरी करते समय पकड़ा जाने वाला चोर अपने किए हुए पाप कर्म से दुःख पाता है उसी प्रकार पाप कर्मों का आचरण करने वाले सभी जीव इसलोक तथा परलोक में दुःख को प्राप्त होते हैं। तात्पर्य यह है कि कर्मों को भोगना ही पड़ेगा बिना भोगे कर्मों से कभी छुटकारा नहीं होता। ___ शंका - प्रस्तुत गाथा में पाप कर्म का फल दुःख बतलाया है परन्तु यह नहीं बतलाया कि कर्म ही उस दुःख रूप फल को देते हैं अतः फल को दिलाने वाला कोई और ही होना चाहिये?
समाम... पत्रकार ने तो काल-स्वभाव-कर्म-पुरुषार्थ और नियति - इन पांचों समवायों को हर एक कार्य का कारण स्वीकार किया है। केवल कर्म मात्र को कारण नहीं माना। अतः ये पांचों ही समवाय शुभाशुभ कर्मों के करने और उनका सुख दुःख रूप जो फल होता है उसके भोगने में उपस्थित रहते हैं। जैसे कल्पना करो कि किसी ने विष भक्षण कर लिया हो तो उसको मृत्यु रूप फल की प्राप्ति इन पांच समवायों से ही होती है। यथा विष भक्षण का समय - काल विष की तीक्ष्ण मारकत्व शक्ति स्वभाव, अशुभ कर्म का उदय - कर्म, खाने का उद्यम करना - पुरुषार्थ और आयु के क्षय के समय में विष भक्षण करना - नियति, इस प्रकार कार्य मात्र की सिद्धि में इन पांच समवायों की कारणता विद्यमान रहती है।
कर्म फल भोग में कोई भागीदार नहीं संसारमावण्ण परस्स अट्ठा, साहारणं जं च करेइ कम्म। कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले, ण बंधवा बंधवयं उर्वति॥४॥ .
कठिन शब्दार्थ - संसारं - संसार को, आवण्ण - प्राप्त हुआ, परस्स - दूसरों के, अट्ठा - निमित्त, साहारणं - साधारण, कम्मस्स - कर्म के, वेयकाले - वेदन के समय में, बंधवा - बंधुजन, बंधवयं - बन्धुता को, ण उति - प्राप्त नहीं होते।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org