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कठिन शब्दार्थ
परेसु - गृहस्थों से, घासं
आहार की, एसिज्जा गवेषणा करे,
भोयणे - भोजन, परिणिट्ठिए - परिनिष्ठित हो जाने पक जाने पर, लद्धे - मिलने पर, पिण्डे - पिण्ड (आहार), अलद्धे - न मिलने पर, ण अणुतप्पेज- अनुताप ( खेद) न करे। भावार्थ - भोजन तैयार हो जाने पर साधु गृहस्थों के यहाँ आहार की गवेषणा करे, आहार मिले अथवा नहीं मिले तो बुद्धिमान् साधु खेद नहीं करे ।
विवेचन - गृहस्थों के यहाँ भोजन तैयार हो जाने पर साधु मधुकरी वृत्ति से आहार की गवेषणा करे। इच्छानुकूल पर्याप्त आहार मिले, तो साधु को हर्षित नहीं होना चाहिए और इच्छा प्रतिकूल अथवा अल्प आहार मिले अथवा आहार नहीं मिले तो खेद नहीं करना चाहिये ।
उत्तराध्ययन सूत्र - द्वितीय अध्ययन
अज्जेवाहं ण लब्भामि, अवि लाभो सुए सिया ।
जो एवं पडिसंचिक्खे, अलाभो तं ण तज्जए ॥ ३१ ॥
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आज, अहं - मुझे, ण लब्भामि
कठिन शब्दार्थ अज्जेव नहीं मिला है, लाभो लाभ प्राप्त होना, सुए - कुल, सिया- हो जायगा, पडिसंचिक्खे - परिसमीक्षा करता है, ण तज्जए - पीड़ित नहीं करता ।
भावार्थ - 'मुझे आज आहार नहीं मिला है तो संभवतः कल प्राप्त हो जायगा' जो साधु - आहार प्राप्त न होने पर इस प्रकार विचार कर के दीनभाव नहीं लाता, उसे अलाभ परीषह नहीं सताता है ।
विवेचन
उच्च-नीच - मध्यम कुलों में गोचरी करते हुए आहार आदि की प्राप्ति होने या न होने पर भी जो संतोष वृत्ति रखता है और 'अलाभ में मुझे परम तप है' यह सोचता है वह अलाभ परीषह को जीतता है।
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उप्पइयं दुक्खं, वेयणाए दुहट्ठिए ।
अदीणो ठाव पण्णं, पुट्ठो तत्थ हियासए ॥ ३२ ॥
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१६. रोग परीषह
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कठिन शब्दार्थ णच्चा
जानकर, उप्पइयं - उत्पन्न हुआ, दुक्खं
आदि रोग, वेयणाए - वेदना से, दुहट्ठिए - पीड़ित होने पर, अदीणो
रहित, ठावए - स्थिर करे, पण्णं
प्रज्ञा को ।
भावार्थ - दुःख (ज्वरादि रोग) उत्पन्न हुआ जान कर वेदना से दुःखी हुआ साधु स्वकृ
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दुःख ज्वर
ता
अदीन
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