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विनयश्रुत - विनय का फल
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भावार्थ तत्त्वज्ञानी पहले से ही शिष्य के विनयादि गुणों से परिचित पूज्य आचार्य महाराज जिस शिष्य पर प्रसन्न होते हैं, उसे प्रसन्न हुए वे मोक्ष अर्थ वाले विपुल श्रुतज्ञान का लाभ देंगे।
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विनय का महत्त्व
स पुज्जसत्थे सुविणीयसंसए, मणोरुई चिट्ठड़ कम्मसंपया ।
तवो समायारी समाहि संवुडे, महज्जुई पंच-वयाइं पालिया ॥ ४७ ॥
कठिन शब्दार्थ पुज्जसत्थे - पूज्य शास्त्र शास्त्रीय ज्ञान में पूज्य सम्माननीय, प्रशंसनीय, सुविणीयसंसए - संशय रहित, मणोरुई - गुरु के मन को प्रीतिकर, कम्मसंपयाकर्म संपदा दस प्रकार की समाचारी से सम्पन्न, तवो समाचारी तप समावारी समाहिसमाधि, संवुडे - संवृत-सम्पन्न, महज्जुई - महान् द्युतिमान् (तपोदीप्ति युक्त), पंचवयाई पांच महाव्रतों का, पालिया
पालन करके ।
भावार्थ - विनय की आराधना करने से शिष्य का शास्त्र ज्ञान प्रशंसनीय और संशय रहित होता है। वह विनीत शिष्यं गुरु की रुचि के अनुसार प्रवृत्ति करता है और दस प्रकार की समाचारी से सम्पन्न होता है। तप समाचारी और समाधि से संवर वाला हो कर तथा पांच महाव्रतों का भली प्रकार पालन कर महान् तेजस्वी होता है।
विवेचन प्रस्तुत गाथा में विनय की महिमा गायी गई है । विनय धर्म की इससे अधिक और क्या महिमा हो सकती है कि उसके उपासक को जनता पूज्य शास्त्र की उपाधि से अलंकृत करती है अर्थात् उसका अध्ययन किया हुआ शास्त्र औरों की अपेक्षा अधिक पूज्य समझा जाता है तथा उसके श्रुतज्ञान को अन्य सर्व साधारण की अपेक्षा अधिक परिष्कृत, असंदिग्ध और आदरणीय माना जाता है क्योंकि उसने गुरु चरणों में रह कर विनय धर्म की सतत आराधना करते हुए श्रुत का सम्यक् अध्ययन किया है । विनयपूर्वक प्राप्त किया श्रुतज्ञान ही संदेह रहित होता है।
विनय का फल
स देवगंधव्वमणुस्स पूइए, चइत्तु देहं मलपंकपुव्वयं ।
सिद्धे वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महिड्डिए ॥ ४८ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ विणयसुयं णाम पढमं अज्झयणं समत्तं ॥
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