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उत्तराध्ययन सूत्र - पहला अध्ययन *************************************************************
भावार्थ - आचार्य महाराज के मन में रहे हुए अभिप्राय को जान कर और उनके वचनों को सुन कर, उसे वाणी द्वारा स्वीकार करे और कार्य द्वारा आचरण में लावे।
वित्ते अचोइए णिच्चं, खिप्पं हवइ सुचोइए। 'जहोवइटुं सुकयं, किच्चाई कुव्वइ सया॥४४॥
कठिन शब्दार्थ - वित्ते - विनीत शिष्य, अचोइए - प्रेरित न किये जाने पर, खिप्पं - शीघ्र ही, हवइ - प्रवृत्त होता है, सुचोइए - अच्छी तरह प्रेरित किये जाने पर, जहोवइटुंयथोपदिष्ट रूप से, सुकयं - भलीभांति, किच्चाई - कार्यों को, कुव्वइ - करता है। ___ भावार्थ - विनयवान् शिष्य सदा गुरु के प्रेरणा किये बिना ही उनका कार्य करता है और गुरु महाराज के सम्यक् प्रेरणा करने पर वह बुरा नहीं मानता, किन्तु शीघ्र ही उस कार्य में प्रवृत्ति करता है तथा सदैव गुरु महाराज के कहे अनुसार भली प्रकार कार्य करता है। ..
विवेचन - विनीत शिष्य अपनी कार्य दक्षता से भी गुरुजनों की प्रसन्नता के सम्पादन में किसी प्रकार की कसर बाकी न रखे, यही उसके विनय धर्म के अनुशीलन का सार है। .
णच्चा णमइ मेहावी, लोए कित्ती से जायए। . हवइ किच्चाणं सरणं, भूयाणं जगई जहा॥४५॥
कठिन शब्दार्थ - णमइ - झुक जाता है, मेहावी - मेधावी - बुद्धिमान्, लोए - लोक में, कित्ती - कीर्ति, जायए - होती है, किच्चाणं - शुभ अनुष्ठानों - धर्माचरण का सरणं - शरण - आधार रूप, जगई - पृथ्वी, जहा - जैसे।
भावार्थ - ऊपर बतलाये हुए विनय के स्वरूप को जान कर बुद्धिमान् व्यक्ति नम्र बनता है, लोक में उसकी कीर्ति होती है और जिस प्रकार पृथ्वी सब प्राणियों के लिए आधार रूप है, उसी प्रकार वह भी सभी शुभ अनुष्ठानों एवं सद्गुणों का आधार रूप होता है।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में विनय धर्म की फलश्रुति का उल्लेख किया गया है। पुजा जस्स पसीयंति, संबुद्धा पुव्व-संथुया। पसण्णा लाभइस्संति, विउलं अट्ठियं सुयं ॥४६॥
कठिन शब्दार्थ - पुजा - पूज्य आचार्य आदि, जस्स - जिस पर, पसीयंति - प्रसन्न होते हैं, संबुद्धा - सम्बुद्ध - सम्यक् वस्तु तत्त्ववेत्ता, पुव्वसंधुया - पूर्व संस्तुत - परिचित, पसण्णा - प्रसन्न हुए, लाभइस्संति - लाभ देंगे, विउलं - विपुल, अट्ठियं - मोक्ष के अर्थ वाले - मोक्ष के प्रयोजन भूत, सुयं - श्रुतज्ञान का।
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