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विनयश्रुत - विनीत को लौकिक व लोकोत्तर लाभ
२३ kakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk अपने-आपको भी कुपित नहीं करे। आचार्य की उपघात करने वाला न हो और छिन्द्रान्वेषी (उनके दोषों को देखने वाला) भी न हो।
आयरियं कुवियं णच्चा, पत्तिएणं पसायए। विज्झविज पंजलिउडो, वएज ण पुणोत्ति य॥४१॥
कठिन शब्दार्थ - कुवियं - कुपित, णच्चा - जानकर, पत्तिएणं - प्रीतिकेन-प्रीतिशांतिपूर्वक हार्दिक भक्ति से अथवा प्रातीतिकेन-शपथ आदि पूर्वक प्रतीतिकारक वचनों से, पसायए - प्रसन्न करे, विज्झविज - शांत करे, पंजलिउडो - हाथ जोड़ कर, वएज - कहे, पुणो - फिर, त्ति - ऐसा अपराध। ____ भावार्थ - आचार्य महाराज को कुपित जानकर विश्वासोत्पादक एवं विनय युक्त वचन कह कर उन्हें प्रसन्न करे और उनके क्रोध को शांत करे तथा हाथ जोड़ कर अपने अपराध की क्षमा मांगे और कहे कि हे भगवन्! फिर ऐसा अपराध कभी नहीं करूंगा। .: विनीत को लौकिक व लोकोत्तर लाभ ..
धम्मज्जियं च ववहारं. बद्धेहिं आयरियं सया। तमायरंतो ववहारं, गरहं णाभिगच्छइ॥४२॥
कठिन शब्दार्थ - धम्मजियं - क्षमा आदि यति धर्म युक्त, ववहारं. - व्यवहार का, बुद्धेहिं - तत्त्वज्ञों ने, आयरियं - सेवन किया है, तं - उस, आयरंतो - आचरण करने वाला, गरहं - निन्दा को, णाभिगच्छइ - प्राप्त नहीं होता।
. भावार्थ - तत्त्वज्ञ मुनियों ने सदा क्षमा आदि यतिधर्म युक्त व्यवहार का सेवन किया है, उस पाप कर्म हटाने वाले व्यवहार का आचरण करने वाला व्यक्ति निंदा को प्राप्त नहीं होता।
मणोगयं वक्कगयं, जाणित्ताऽऽयरियस्स उ। तं परिगिज्झ वायाए, कम्मुणा उववायए॥४३॥
कठिन शब्दार्थ - मणोगयं - मनोगत - मन में रहे हुए अभिप्राय को, वक्कगयं - वचनों को सुन कर, जाणित्ता - जान कर, आयरियस्स - आचार्य महाराज के, परिगिज्झ - स्वीकार करे, वायाए - वचन से, कम्मुणा - कार्य से, उववाग्रए - आचरण में लावे।
* पाठान्तर - बुखेहाऽऽयरियं . . .
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