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ब्रह्मचर्य-समाधि स्थान - सप्तम ब्रह्मचर्य समाधि स्थान-प्रणीत आहार त्याग २८३ . ************************************************* ********* . बंभचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जेज्जा भेदं वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओं भंसेज्जा। तम्हा खलु शो णिग्गंथे अइमायाए पाणभोयणं आहारेज्जा॥८॥
कठिन शब्दार्थ - अइमायाए - अतिमात्रा में (परिमाण से अधिक), पाणभोयणं - पान भोजन। ___भावार्थ - जो अतिमात्रा में पान भोजन नहीं करता, वह निग्रंथ है ऐसा क्यों? इस प्रकार पूछने पर आचार्य ने कहा - जो परिमाण से अधिक खाता पीता है उस ब्रह्मचारी निग्रंथ को. ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा अथवा विचिकित्सा उत्पन्न होती है यो ब्रह्मचर्य का विनाश हो जाता है अथवा उन्माद पैदा हो जाता है अथवा दीर्घकालिक रोग और आतंक हो जाता है अथवा वह केवलि-प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है अतः निग्रंथ मात्रा से अधिक पान भोजन का सेवन न करे।
....... ... . विवेचन - 'अइमायाए' की व्याख्या इस प्रकार है - मात्रा का अर्थ है - परिमाण। भोजन का जो परिमाण है, उसका उल्लंघन करना अतिमात्रा हैं। बृहवृत्ति पत्र ४२६ में भोजन का परिमाण बताने वाली गाथा यह है -
बत्तीसं किर कवला आहारो कुच्छिपूरओ भणिओ।
पुरिसस्स महिलियाए अहावीसं भवे कवला॥ ___ अर्थात् - पुरुष. (साधु) के भोजन का परिमाण है - बत्तीस कौर और स्त्री (साध्वी) के भोजन का.परिमाण अट्ठाईस कौर है, इससे अधिक भोजन-पान का सेवन करना अतिमात्रा में भोजन-पान है। . . अतिमात्रा में आहार करने से पेट उसी तरह फटने लगता है जिस तरह सेर की हंडिया में . सवा सेर अन्न भरने से, वह फटती है। अधिक आहार करने से मनुष्य के रूप, बल, कांति,
ओज और गात्र क्षीण हो जाते हैं उसे प्रमाद, निद्रा आलस्य घेर लेते हैं, पाचन शक्ति क्षीण हो जाती है। अजीर्ण गैस, अपच, उदर शूल, अतिसार आदि रोग का भय रहता है जठराग्नि कूपित हो जाती है। इस प्रकार शारीरिक और मानसिक कई हानियां है अतः ब्रह्मचर्य समाधि के लिये अति मात्रा में आहार त्याग जरूरी कहा है।
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