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________________ २८२ ... उत्तराध्ययन सूत्र - सोलहवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ विवेचन - स्त्री के साथ पूर्व गृहस्थ जीवन में भोगे हुए शब्दादि पांचों कामगुणों में से एक भी विषय भोग का स्मरण करने से ब्रह्मचर्य भंग हो जाता है इसलिए यह समाधि स्थान बताया गया है। सप्तम ब्रह्मचर्य समाधि स्थान - प्रणीत आहार त्याग णो पणीयं आहारं आहारित्ता हवइ से णिग्गंथे। तं कहमिति चे? आयरियाहणिग्गंथस्स खलु पणीयं आहारं आहारेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जेज्जा भेदं वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा केवंलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु णो णिग्गंथे पणीयं आहारं आहारेज्जा॥७॥ ... कठिन शब्दार्थ - पणीयं - प्रणीत-जिस खाद्य पदार्थ से तेल घी आदि की बूंदे टपक रही हो अथवा जो धातु वृद्धिकारक हो, आहारं - आहार को, णो आहारित्ता हवइ - आहार . नहीं करता है ___ भावार्थ - जो प्रणीत-रसयुक्त पौष्टिक आहार नहीं करता, वंह निग्रंथ है। यह क्यों? ऐसा पूछने पर आचार्य कहते हैं - जो प्रणीत सरस आहार करता है उस ब्रह्मचारी निग्रंथ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा और विचिकित्सा उत्पन्न होती है अथवा उसके ब्रह्मचर्य का भंग हो जाता है अथवा उन्माद पैदा हो जाता है अथवा दीर्घकालिक रोग और आतंक होता है अथवा वह केवलि प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। इसलिए निग्रंथ प्रणीत-सरस एवं पौष्टिक आहार न करे। . विवेचन - सरस स्निग्ध आहार धातु को दीप्त करता है। धातु के दीप्त होने से मनोविकार बढ़ता है, मनोविकार वृद्धि से अंग-कुचेष्टा होती है या वीर्यपात होता है और इससे प्रायः मनुष्य भोग में प्रवृत्त हो जाते हैं। अतः सरस, स्निग्ध एवं स्वादिष्ट पौष्टिक आहार करने वाला साधक अपने बहुमूल्य ब्रह्मचर्य महाव्रत को भंग कर डालता है। आठवां ब्रह्मचर्य समाधिस्थान-अति भोजन त्याग णो अइमायाए पाणभोयणं आहारित्ता हवइ से णिग्गंथे। तं कहमिति चे? आयरियाह-णिग्गंथस्स खलु अइमायाए पाणभोयणं आहारेमाणस्म बंभयारिस्स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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