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________________ ६६ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र मनुष्य इन प्रकार संकटों से रहित होते हैं। हे आयुष्मन् गौतम! वे विवेचन - इस सूत्र में आए कुछ विशिष्ट शब्दों का भावार्थ यह है दुर्भूत - धान्य आदि के विनाश हेतु चूहे, टिड्डी आदि के उपद्रव । कुलरोग - आनुवंशिक रोग । ग्रामरोग - गाँव भर में फैली बीमारी । मंडलरोग - ग्राम समूह में व्याप्त बीमारी । मानवों की आयु (३२) तीसे णं भंते! समाए भारहे वासे मणुयाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं देसूणाई तिण्णि पलिओवमाई, उक्कोसेणं तिणि पलि ओवमाई । तीसे णं भंते! समाए भारहे वासे मणुयाणं सरीरा केवइयं उच्चत्तेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं देसूणाई तिण्णि गाउयाई, उक्कोसेर्ण तिण्णि गाउयाई । णं भंते! मणुया किंसंघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! वइरोसभणारायसंघयणी पण्णत्ता । तेसि णं भंते! मणुयाणं सरीरा किंसंठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! समचउरंससंठाणसंठिया पण्णत्ता । तेसि णं मणुयाणं बेछप्पण्णा पिट्ठकरंडयसया पण्णत्ता समणाउसो !। Jain Education International ते णं भंते! मणुया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छन्ति, कहिं उववज्जंति ? गोयमा ! छम्मासावसेसाउ जुयलगं पसवंति, एगूणपण्णं राइंदियाई सारक्खंति, संगोवेंति, संगोवेत्ता, कासित्ता, छीड़त्ता, जंभाइत्ता, अक्किट्ठा, अव्वहिया, अपरियाविया कालमासे कालं किच्चा देवलोएसु उववज्जंति, देवलोयपरिग्गहा ते मया पण्णत्ता । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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