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द्वितीय वक्षस्कार - मानवों की आयु
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तीसे णं भंते! समाए भारहे वासे कइविहा मणुस्सा अणुसज्जित्था?
गोयमा! छव्विहा पण्णत्ता, तंजहा - पम्हगंधा १, मियगंधा २, अममा ३, तेयतली ४, सहा ५, सणिचरी ६।
भावार्थ - हे भगवन्! उस समय के मनुष्यों की आयु कितने काल की होती है ?
उत्तर - हे गौतम! उस समय मनुष्यों का आयुष्य जघन्य न्यूनतम तीन पल्योपम से कुछ कम तथा अधिकतम तीन पल्योपम होता है।
हे भगवन्! उस समय भरत क्षेत्र के मनुष्यों के शरीर कितनी ऊँचाई के होते हैं?
हे गौतम! उनके शरीर जघन्यतः तीन कोस से कुछ कम तथा अधिकतम तीन कोस तक ऊँचे होते हैं।
हे भगवन्! उन मनुष्यों का दैहिक संहनन किस प्रकार का होता है? हे गौतम! वे वज्रऋषभनाराच संहनन के होते हैं, ऐसा कहा गया है। हे भगवन्! उन मनुष्यों का दैहिक संस्थान किस प्रकार का होता है?
हे आयुष्मन् गौतम! वे समचतुरस्र संस्थान युक्त होते हैं। उनकी पसलियों की दो सौ छप्पन हड्डियाँ होती हैं।
हे भगवन्! वे मनुष्य अपनी आयु पूर्ण कर, मृत्यु प्राप्त कर कहाँ जाते हैं, कहाँ जन्म लेते हैं?
हे गौतम! जब उनकी आयु छह महीने बाकी रहती है, तब उन युगलों के एक बालक एवं बालिका का जन्म होता है। वे उनपचास दिन-रात पर्यन्त उनका लालन-पालन संरक्षण करते हैं। इसके पश्चात् वे खांसी, छींक और जम्हाई लेकर, दैहिक कष्ट या परिताप का अनुभव न कर कालधर्म को प्राप्त होते हैं, स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं। उनका जन्म स्वर्ग में ही होता है, अन्यत्र नहीं। 'हे भगवन्! उस समय भरतक्षेत्र में कितने प्रकार के मनुष्य होते हैं?
हे गौतम! उस काल में छह प्रकार के मनुष्य बतलाए गए हैं, यथा - १. पद्मगंध - कमल के सदृश गंध युक्त। २. मृगगंध - कस्तूरी तुल्य सौरभमय। ३. अमम - ममत्व वर्जित। ४. तेजस्वी - तेजयुक्त। ५. सह-सहिष्णु तथा ६. शनैश्चारी-धीरे-धीरे चलने वाले।
विवेचन - इस सूत्र में यौगलिकों की आयु के संदर्भ में जो वर्णन आया है, उस संबंध में ज्ञातव्य है कि उनकी जघन्यतः तीन पल्योपम से कुछ कम आयु बतलाई गई है, वह स्त्रियों से संबंधित है। इसका अभिप्राय यह है कि प्रत्येक युगल में से स्त्री की मृत्यु पहले होती है। उसे वैधव्य नहीं देखना पड़ता। पुरुष की मृत्यु उसके पश्चात् होती है।
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