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द्वितीय वक्षस्कार अवसर्पिणी का प्रथम आरक: सुषमं सुषमा
बोल - दुःखी व्यक्तियों का सामूहिक क्रंदन ।
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क्षार
वैर - असहिष्णुता के कारण हिंसक भाव ।
महासंग्राम - व्यूह रचना एवं युद्धविषयक व्यवस्था के साथ होने वाला महारण । महायुद्ध - व्यूह रचना एवं सुव्यवस्थित मोर्चाबंदी के बिना होने वाला युद्ध । महाशस्त्रपतन - विनाशकारी, दिव्य, घोर अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग । महापुरुषपतन - छत्रधारी राजा एवं सम्राट आदि विशिष्ट पुरुषों का वध । महारुधिरनिपतन छत्रधारी सम्राट आदि विशिष्ट अधिकार संपन्नजनों आदि का खून
एक दूसरे के प्रति खार - पारस्परिक ईर्ष्या जनित विद्वेष ।
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बहे, ऐसे उपद्रव ।
अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे दुब्भूयाणि वा, कुलरोगाइ वा, गामरोगाइ वा, मंडलरोगाइ वा, पोट्टरोगाइ वा, सीसवेयणाइ वा, कण्णोअच्छिणहदंतवेयणाइ वी, कासाइ वा, सासाइ वा, सोसाइ वा, जरा इ वा दाहाइ वा, अरिसाइ वा, अजीरगाइ वा, दओदराइ वा, पंडुरोगाइ वा, भगंदराइ वा, गाहियाइ वा, बेयाहियाइ वा, तेयाहियाइ वा, चउत्थाहियाइ वा, इंदम्गहाइ वा, धणुग्गहाइ वा, खंदग्गहाइ वा, कुमारग्गहाड़ वा, जक्खग्गहाइ वा, भूअग्गहाइ वा, मत्थसूलाइ वा, हिययसूलाइ वा, पोट्टसूलाइ वा, कुच्छिसूलाइ वा, जोणिसूलाइ वा, गाममारीइ वा, जाव सण्णिवेसमारीइ वा, पाणिक्खया, जणक्खया, वसणब्भूयमणारिआ ?
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गोमा ! णो णट्ठे समट्ठे, ववगयरोगायंका णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! भावार्थ हे भगवन्! क्या उस समय भरतक्षेत्र में दुर्भूत, कुलरोग, ग्रामरोग, मंडलरोग, पोट्टरोग, शीर्षवेदना, कर्ण - ओष्ठ नेत्र-नख- दंत वेदना, खांसी, श्वास, शोष-क्षय, दाह-जलन, अर्श- बवासीर, अजीर्ण, जलोदर, पांडुरोग- पीलिया, भगदर-नासूर, एक दिन, दो दिन, तीन दिन तथा चार दिन के अंतर से आने वाला ज्वर, इन्द्र, धनुः स्कन्द कुमार, यक्ष, शूल आदि ग्रह जनित बाधा, मस्तक, हृदय, कुक्षि, योनि गत शूल तथा ग्राम यावत् सन्निवेश में व्याप्त महामारी, इनसे बहुत से प्राणियों की मृत्यु, जन जन में विपत्ति, अनार्यजनों से होने वाले संकट ये सब होते हैं?
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