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________________ ६४ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र आयुष्मन् गौतम! ऐसा नहीं होता, क्योंकि वह भूमि स्थाणु, कंटक, तृण, पत्ते आदि के कचरे से रहित होती है। अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे डंसाइ वा, मसगाइ वा, जूयाइ वा, लिक्खाइ वा, ढिंकुणाइ वा, पिसुयाइ वा? णो इणढे समढे, ववगयडंसमसगजूयलिक्खढिंकुणपिसूया उवद्दवविरहिया णं सा समा पण्णत्ता। भावार्थ - हे भगवन्! क्या उस काल में, भरत क्षेत्र में डांस, मशक, यूका, लीख, खटमल तथा पिस्सू होते हैं? हे गौतम! ये नहीं होते। वह भूमि इन सबसे विरहित होती है। अस्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे अहीइ वा अयगराइ वा? : हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं आबाहं वा, (वाबाहं वा, छविच्छेअं वा उप्पायेंति,) जाव पगइभद्दया णं ते वालगगणा पण्णत्ता। भावार्थ - हे भगवन्! क्या उस समय भरत क्षेत्र में सांप और अजगर होते हैं? आयुष्मान् गौतम! हाँ होते हैं, पर वे मनुष्यों के लिए बाधा जनक नहीं होते यावत् वे सर्पगण स्वभाव से ही भद्र होते हैं। अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे डिंबाइ वा, डमराइ वा, कलहबोलखारवइरमहाजुद्धाइ वा, महासंगामाइ वा, महासत्थपडणाइ वा, महापुरिसपडणाइ वा, महारुहिरणिवडणाइ वा? गोयमा! णो इणढे समढे, ववगयवेराणुबंधा णं ते मणुया पण्णत्ता स०। भावार्थ - हे भगवन्! क्या उस समय भरतक्षेत्र में डिम्ब, डमर, कलह, बोल, क्षार, वैर, महायुद्ध, महासंग्राम, महाशास्त्रपतन, महापुरुष पतन, महारुधिर निपतन-ये उपद्रव होते हैं? गौतम! वे नहीं होते, क्योंकि वे मनुष्य वैरानुबंध से रहित होते हैं, ऐसा प्रतिपादित हुआ है। विवेचन - इस सूत्र में प्रयुक्त शब्दों का भावार्थ निम्नांकित है - डिम्ब - भयानक स्थिति। डमर - राष्ट्र में भीतरी-बाहरी उपद्रव। कलह - वाक्युद्ध। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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