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________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे आवाहाइ वा, विवाहाइ वा, जण्णाइ वा, सद्धाइ वा, थालीपागाइ वा, मियपिंड-निवेयणाइ वा? . णो इणढे समढे, ववगय-आवाह-विवाह-जण्ण-सद्ध-थालीपाग-मियपिंडणिवेयणाइ वा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो!। भावार्थ - हे भगवन्! क्या उस समय भरत क्षेत्र में आवाहर, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध, स्थालीपाक, मृतपिण्डनिवेदन होते हैं? हे गौतम! ये सब नहीं होते क्योंकि वे मनुष्य आवाह, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध, स्थालीपाक तथा मृतपिण्डनिवेदन से निरपेक्ष होते हैं। । विवेचन - विवाह से पूर्व वाग्दान समारोह (सगाई)-आवाह, पाणिग्रहण संस्कार-विवाह, प्रतिदिन अपने इष्ट देव का पूजन अर्चन-यज्ञ, पितृक्रिया-श्राद्ध, लोक प्रचलित मृतक क्रिया विशेष-स्थालीपाक तथा मृत पुरुषों के लिए श्मशान आदि में पिण्ड समर्पण-मृत पिण्ड निवेदन संज्ञाओं से अभिहित होते रहे हैं। . ___यहाँ विवाह संस्कार से लेकर मृत्यु पर्यन्त क्रिया-प्रक्रियाओं का संकेत है, जिनका संभवतः भगवान् महावीर के युग में प्रचलन रहा हो। यदि ऐसा नहीं होता तो गौतम को इस प्रकार की जिज्ञासा कैसे होती? अस्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे इंदमहाइ वा, खंदमहाइ वा, णागमहाइवा, जक्खमहाइ वा, भूयमहाइ वा, अगडमहाइवा, तडागमहाइ वा, दहमहाइ वा, णइमहाइ वा, रुक्खमहाइ वा, पव्वयमहाइ वा, थूभमहाइ वा, चेइयमहाइवा? णो इण समढे, ववगय-महिमा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो!। भावार्थ - हे भगवन्! क्या उस समय भरत क्षेत्र में इन्द्रोत्सव, स्कंदोत्सव, नागोत्सव, यज्ञोत्सव, भूतोत्सव, कूपोत्सव, तड़ागोत्सव, ब्रहोत्सव, नद्युत्सव, वृक्षोत्सव, पर्वतोत्सव, स्तूपोत्सव तथा चैत्योत्सव - ये विविध प्रकार के उत्सव होते हैं? आयुष्मन् श्रमण गौतम! ये उत्सव वहाँ नहीं होते क्योंकि वे मनुष्य उनसे निरपेक्ष होते हैं, वैसे उत्सवों की अपेक्षा नहीं रखते। विवेचन - प्राचीनकाल में लौकिक आनंदोल्लास, मांग-मनौति आदि के लिए इन्द्र-जो For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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