________________
द्वितीय वक्षस्कार - अवसर्पिणी का प्रथम आरक
सुषम- सुषमा
वर्षा के देव माने जाते हैं, स्कंद-जो शिव पुत्र कार्तिकेय के रूप में प्रसिद्ध है, भूत-प्रेत आदि को उद्दिष्ट कर तथा कूप, सरोवर, झील, नदी, वृक्ष, पर्वत आदि प्राकृतिक स्थानों को लक्षित कर स्तूप, चैत्य आदि मानव निर्मित स्थानों को उद्दिष्ट कर विविध प्रकार के उत्सव आयोजित होते रहते थे।
अत्थि णं भंते! तीसे समाए णड-पेच्छाइ वा णट्ट-पेच्छाइ वा, जल्लपेच्छाड़ वा, मल्ल-पेच्छाइ वां, मुट्ठिय-पेच्छाइ वा, वेलंबग-पेच्छाड़ वा, कहापेच्छाइ वा, पवग - पेच्छाइ वा, लासग-पेच्छाइ वा ?
इट्ठे समट्ठे, ववगय- कोउहल्ला णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो ! |
भावार्थ - हे भगवन्! क्या उस समय भरत क्षेत्र में नाटक दिखाने वालों, नाचने वालों, रस्सी आदि पर कलाबाजियाँ दिखाने वालों, कुश्ती का प्रदर्शन करने वालों, मुष्टि प्रहार (मुक्केबाजी) प्रदर्शकों, हंसी-मसखरी का प्रदर्शन करने वालों, कथाएँ कहने वालों, प्लावन - जल में तैराकी आदि का प्रदर्शन करने वालों, वीररस की गाथाओं द्वारा मनोरंजन करने वालों द्वारा • दिखाए जाने वाले कौतुक को देखने हेतु लोग इकट्ठे होते हैं ?
आयुष्मान् श्रमण गौतम! ऐसा नहीं होता। क्योंकि उन मनुष्यों के मन में इस प्रकार के कौतूहल, खेल-तमाशे देखने की इच्छा ही नहीं होती ।
अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे सगडाइ वा, रहाइ वा, जाणाइ वा, जुग्गाइ वा, गिल्लीइ वा, थिल्लीइ वा, सीयाइ वा, संदमाणियाइ वा ?
णो इणट्ठे समट्ठे, पायचार-विहारा णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो ! ।
भावार्थ हे भगवन्! क्या उस काल में, भरत क्षेत्र में बैलों द्वारा खींची जाने वाली गाड़ी, रथ या अन्य वाहन, युग्य, मिल्ली, थिल्ली, शिविका, स्यंदमानिका ये यान - वाहन
होते हैं?
-
Jain Education International
आयुष्मन् श्रमण गौतम! ये सब नहीं होते, क्योंकि उन मनुष्यों में पैदल चलने की ही प्रवृत्ति होती है।
विवेचन इस सूत्र में भगवान् महावीर के समय में प्रयुक्त होने वाले यान - वाहनों का यहाँ संकेत हुआ है। शकट- ट-बैलगाड़ी, रथ-घोड़ा गाड़ी, युग्य-गोल्ल देश में प्रसिद्ध दो हाथ लंबे-चौड़े डोली जैसे यान, गिल्ली - दो पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली डोली, थिल्ली -दो घोड़ों या
६१
-
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org