________________
३८
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र -------0--0-0-0-0-0-00-00-14-0-0-0-0-0-0-0-00-00-00-00-00-00-00-0-10-08-0-8-0----
एएणं मुहुत्तप्पमाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरत्तो, पण्णरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उऊ, तिण्णि उऊ अयणे, दो अयणा संवच्छरे, पंचसंवच्छरिए जुगे, वीसंजुगाईवाससए, दस वाससयाईवाससहस्से, सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्से, चउरासीइं वाससयसहस्साई से एगे पुव्वंगे, चउरासीइ पुव्वंगसयसहस्साइं से एगे पुव्वे, एवं बिगुणं बिगुणं णेयव्वं, तुडियंगे, तुडिए, अडडंगे, अडडे, अववंगे, अववे, हुहुयंगे, हुहुए, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे, पउमे, णलिणंगे, णलिणे, अत्थणिउरंगे, अत्थणिउरे, अउयंगे, अउए, णउयंगे, णउए, पउयंगे, पउए, चूलियंगे, चूलिए, जाव चउरासीइं सीसपहेलि-यंगसयसहस्साइं सा एगा सीसपहेलिया। एताव ताव गणिए, एताव ताव गणियस्स विसए, तेणं परं ओवमिए।
शब्दार्थ - ओसप्पिणिकाले - अवसर्पिणी काल, उस्सप्पिणिकाले - उत्सर्पिणी काल, मुहुत्तस्स - मुहूर्त के, उस्सासद्धा - उच्छ्वास-निःश्वास, आवलियाओ - आवलिकाएँ, अहोरत्तो - दिन-रात, पक्ख - पक्ष, उऊ - ऋतु, अयणे - अयन-वर्षाद्ध, संवच्छरे - संवत्सर-वर्ष, पुव्वंगे - पूर्वांग, पुव्वे - पूर्व, विगुणं (बिगुण) - विगुणित।।
भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप के अंतर्गत भरत क्षेत्र में कितने प्रकार का काल परिज्ञापित हुआ है?
हे गौतम! अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी के रूप में दो प्रकार का काल बतलाया गया है। हे भगवन्! अवसर्पिणी काल कितने प्रकार का कहा गया है?
हे गौतम! अवसर्पिणी काल १. सुषम-सुषमा २. सुषमा ३. सुषम-दुःषमा ४. दुःषम-सुषमा ५. दुःषमा ६. दुःषम-दुःषमा के रूप में छह प्रकार का बतलाया गया है।
हे भगवन्! उत्सर्पिणी काल कितने प्रकार का होता है? हे गौतम! वह दुःषम-दुःषमा से लेकर यावत् सुषम-सुषमा पर्यन्त छह प्रकार का है। हे भगवन्! एक मुहूर्त में कितने उच्छ्वास-निःश्वास होते हैं?
हे गौतम! इस संदर्भ में यह ज्ञातव्य है कि असंख्यात समयों के समुदयात्मक-सम्मिलित काल को आवलिका कहा गया है। संख्यात आवलिकाओं का एक उच्छ्वास एवं उतनी ही आवलिकाओं का एक निःश्वास होता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org