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सप्तम् वक्षस्कार - संवत्सर-भेद
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विसमं पवालिणो परिणमंति अणुऊसु दिति पुप्फफलं। वासं ण सम्म वासइ, तमाहु संवच्छरं कम्मं ॥३॥ पुढविदगाणं च रसं पुप्फफलाणं च देह आइच्चो। अप्पेणवि वासेणं सम्मं णिप्फज्जए सस्सं॥४॥ आइच्चतेयतविया खणलवदिवसा उऊ परिणमंति। पूरेइ य णिण्णथले तमाहु अभिवडियं जाण॥५॥" से लक्खण संवच्छरे। सणिच्छरसंवच्छरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! अट्ठावीसइविहे पण्णत्ते, तंजहा
अभिई सवणे धणिट्ठा सयभिसया दो य होंति भद्दवया। रेवइ अस्सिणि भरणी, कत्तिय तह रोहिणी चेव॥१॥ .. जाव उत्तराओ आसाढाओ जं वा सणिच्चरे महग्गहे तीसाए संवच्छरेहिं सव्वं णक्खत्तमण्डलं समाणेइ सेत्तं सणिच्छरसंवच्छरे।
शब्दार्थ - विहप्फई - वृहस्पति।
भावार्थ - हे भगवन्! संवत्सर कितने प्रतिपादित हुए हैं? ___ हे गौतम! वे पांच बतलाए गए हैं - १. नक्षत्र संवत्सर २. युग संवत्सर ३. प्रमाण संवत्सर ४. लक्षण संवत्सर ५. शनैश्चर संवत्सर। . हे भगवन्! नक्षत्र संवत्सर कितनी तरह का कहा गया है?
हे गौतम! वह बारह तरह का कहा गया है - श्रावण, भाद्रपद, आश्विन यावत् आषाढ। अथवा बृहस्पति, महाग्रह बारह वर्षों में जो समस्त नक्षत्र मण्डल को पार करता है, वह काल विशेष भी नक्षत्र संवत्सर के नाम से अभिहित होता है।
'हे भगवन्! युग संवत्सर कितने प्रकार का कहा गया है? . हे गौतम! यह पांच प्रकार का बतलाया गया है - १. चन्द्र संवत्सर २. चन्द्र संवत्सर ३. अभिवर्द्धित संवत्सर ४. चंद्र संवत्सर ५. अभिवर्द्धित संवत्सर।
हे भगवन्! प्रथम चन्द्र संवत्सर के कितने पर्व-पक्ष कहे गए हैं?
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