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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
हे गौतम! उसके चौबीस पक्ष कहे गए हैं। हे भगवन्! द्वितीय चन्द्र संवत्सर के कितने पक्ष कहे गए हैं? हे गौतम! उसके भी चौबीस पक्ष बतलाए गए हैं। हे भगवन्! तृतीय अभिवर्द्धित संवत्सर के कितने पक्ष बतलाए गए हैं? हे गौतम! उसके २६ पक्ष बतलाए गए हैं। चौथे चन्द्र संवत्सर के भी २४ एवं पांचवें अभिवर्द्धित संवत्सर के २६ पक्ष कहे गए हैं। पांच भेदों में बंटे हुए युग संवत्सर के सारे १२४ पक्ष होते हैं। हे भगवन्! प्रमाण संवत्सर कितनी तरह का कहा गया है?
हे गौतम! यह पांच तरह का कहा गया है - १. नक्षत्र २. चन्द्र ३. ऋतु ४. आदित्य ५. अभिवर्द्धित संवत्सर।
हे भगवन्! लक्षण संवत्सर कितनी तरह का कहा गया है? हे गौतम! यह पांच प्रकार का कहा गया है
गाथाएं - १. समक संवत्सर - जिसमें कृतिका आदि नक्षत्र समरूप में होते हैं - जो ... नक्षत्र जिन तिथियों में स्वाभाविक रूप में होते हैं, तदनुरूप कार्तिकी पूर्णिमा आदि तिथियों सेमासान्तिक तिथियों से योग करते हैं, जिसमें ऋतुएं समरूप में - न अधिक उष्ण तथा न अधिक शीतल होती हैं, जो विपुल जलयुक्त-वृष्टि युक्त होता है, वह समक् संवत्सर के नाम से अभिहित हुआ है॥१॥
२. चन्द्र संवत्सर - जब चन्द्रमा के साथ पूर्णिमा में विषम-मास विसदृश नाम युक्त नक्षत्र का योग होता है, जो कटुक - ऊष्मा, शैत्य, रोग आदि की बहुतायत के कारण कष्ट-कर होता है, अतिवृष्टि युक्त होता है, वह चन्द्र संवत्सर कहा जाता है।
३. कर्म संवत्सर - जहाँ असमय में वनस्पति अंकुरित होती है, विपरीत ऋतु में पुष्प, फल आदि फलते-फूलते हैं, जिसमें यथोचित वृष्टि नहीं होती, उसे कर्म संवत्सर के नाम से अभिहित किया गया है।
४. आदित्य संवत्सर - जिसमें सूरज, पृथ्वी, जल, फूल, फल इन सबको रस प्रदान करता है, जिसमें स्वल्प वृष्टि से ही धान्य भलीभांति उत्पन्न होता है, वह आदित्य संवत्सर कहा जाता है।
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