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सप्तम् वक्षस्कार - संवत्सर-भेद
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जम्बुद्दीवे णं भंते! दीवे चंदिमा उदीणपाईणमुग्गच्छ पाईणदाहिणमागच्छंति जहा सूरवत्तव्वया जहा पंचमसयस्स दसमे उद्देसे जाव अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो!, इच्चेसा जम्बुद्दीवपण्णत्ती चंदपण्णत्ती वत्थुसमासेणं सम्मत्ता भवइ।
भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप में दो सूर्य उत्तर-पूर्व दिक्कोण में उदित होकर क्या दक्षिण पूर्व कोण में आते हैं? क्या दक्षिण-पूर्व कोण में उदित होकर दक्षिण पश्चिम कोण में अस्त होते हैं? क्या दक्षिण-पश्चिम कोण में उदित होकर पश्चिमोत्तर कोण में आते हैं? क्या पश्चिमोत्तर कोण में उदित होकर उत्तर-पूर्व में आते हैं?
हाँ, गौतम! ऐसा ही होता है। भगवती सूत्र, पंचम शतक प्रथम उद्देशक में यावत् ‘णेवत्थि उस्सप्पिणी अवट्ठिए णं तत्थकाले पण्णत्ते' तक जो वर्णन हुआ है, वह इस संदर्भ में ज्ञातव्य ग्राह्य है।
हे आयुष्मन् श्रमण गौतम! जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में सूर्य विषयक वर्णन यहाँ संक्षेप में समाप्त होता है। - हे भगवन्! जंबूद्वीप में दो चन्द्रमा उत्तर-पूर्व कोण में उदित होकर दक्षिण पूर्व कोण में आते हैं इत्यादि सूर्य के सदृश वर्णन भगवती सूत्र पंचम शतक, दशम उद्देशक में आए हुए यावत् 'अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते' तक से ज्ञातव्य है। . हे आयुष्मन् श्रमण गौतम! जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में चंद्र विषयक वर्णन यहाँ संक्षिप्त रूप में समाप्त होता है। ....
संवत्सर-भेद
(१८४) कई णं भंते! संवच्छरा पण्णत्ता?
गोयमा! पंच संवच्छरा पण्णत्ता, तंजहा-णक्खत्तसंवच्छरे जुगसंवच्छरे पमाणसंवच्छरे लक्खणसंवच्छरे सणिच्छरसंवच्छरे।
णक्खत्तसंवच्छरे णं भंते! कइविहे पण्णते?
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