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सप्तम् वक्षस्कार
क्षेत्र - स्पर्श
प्रकार अस्त होने के समय लेश्या के प्रतिघात के कारण दूर होते हुए भी सूर्य नजदीक दिखाई
देते हैं।
हे गौतम! दूर यावत् समीप दिखाई देने के यही कारण हैं।
क्षेत्र - स्पर्श
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जम्बुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया किं तीयं खेत्तं गच्छंति पडुप्पण्णं खेत्तं गच्छंति अणागयं खेत्तं गच्छंति ?
गोयमा ! णो तीयं खेत्तं गच्छंति पंडुप्पण्णं खेत्तं गच्छंति णो अणागयं खेत्तं गच्छंतित्ति,
तं भंते! किं पुट्ठं गच्छंति जाव णियमा छद्दिसिंति, एवं ओभासेंति । तं भंते! किं पुढं ओभासेंति ०? एवं आहारपयाइं णेयव्वाइं पुट्ठोगाढमणंतर अणुमहआइ-विसयाणुपुव्वी य जाव णियमा छद्दिसिं, एवं उज्जोवेंति वें भासेंति ।
शब्दार्थ - तीयं - अतीत, पडुप्पण्णं प्रत्युत्पन्न - वर्तमान, अणागयं अनागत, पुट्ठे - स्पर्श । भावार्थ - हे भगवन्! क्या जंबूद्वीप में सूर्य अतीत क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं या वर्तमान क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं या भविष्य क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं?
- हे गौतम! वे अतीत एवं अनागत क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करते केवल वर्तमान क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं।
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हे भगवन्! क्या वे (गम्यमान क्षेत्र का) स्पर्श करते हुए अतिक्रमण करते हैं, यावत् छह दिशा विषयक क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं, इस प्रकार अवभासित होते हैं ?
हे भगवन्! क्या वे उस क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अवभासित होते हैं?
इस संबंध का वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के आहार पद के सपृष्ट सूत्र, अवगाढ़ सूत्र, अनंतर सूत्र, अणुबादर सूत्र, विषय सूत्र, आनुपूर्वी सूत्र आदि के रूप में विस्तार से ज्ञातव्य है यावत् दोनों सूर्य छहों दिशाओं में उद्योत करते हैं, प्रभासित होते हैं।
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