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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
सूर्य की अवभासन आदि क्रिया
(१७१) जम्बुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरियाणं किं तीए खेत्ते किरिया कजइ पडुप्पण्णे० अणागए०?
गोयमा! णो तीए खेत्ते किरिया कज्जइ पडुप्पण्णे० कज्जइ णो अणागए। सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ०। गोयमा! पुट्ठा० णो अणापुट्ठा कज्जइ जाव णियमा छद्दिसिं।
भावार्थ - हे भगवन्! जंबुद्वीप में दो सूर्यों द्वारा अवभासन आदि की क्रिया अतीत, वर्तमान या भविष्य में से किस क्षेत्र में की जाती है?
हे गौतम! अवभासन आदि क्रिया अतीत एवं भविष्य - दोनों क्षेत्रों में नहीं की जाती, वर्तमान क्षेत्र में की जाती है।
हे भगवन्! क्या सूर्य अपने क्षेत्र द्वारा क्षेत्र स्पर्श पूर्वक ये क्रियाएं करते हैं या अस्पर्श पूर्वक करते हैं? __ हे गौतम! वे क्षेत्र के स्पर्शपूर्वक अवभासन आदि क्रिया करते हैं, अस्पृष्ट रूप में यह नहीं करते यावत् ये क्रियाएं छहों दिशाओं में नियमतः की जाती है।
सूर्य द्वारा परितापित प्रदेश
(१७२) जम्बुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया केवइयं खेत्तं उडुं तवयंति अहे तिरियं च?
गोयमा! एगं जोयणसयं उडे तवयंति अट्ठारससयजोयणाई अहे तवयंति सीयालीसं जोयणसहस्साई दोण्णि य तेवढे जोयणसए एगवीसं च सट्ठिभाए जोयणस्स तिरियं तवयंतित्ति।
__भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप में सूर्य कितने क्षेत्र के ऊर्ध्व भाग को, अधोभाग को तथा तिर्यक् भाग को अपने तेज से परिव्याप्त करते हैं (तपाते हैं)?
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