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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
भासियव्वा, अप्पे० हक्कारेंति, एवं पुक्कारेंति थक्कारेंति ओवयंति उप्पयंति परिवयंति जलंति तवंति पयवंति गजंति विजुयायंति वासिंति....., अप्पेगइया देवुक्कलियं करेंति एवं देवकहकहगं करेंति अप्पे० दुहुदुहुगं करेंति अप्पे०. विकियभूयाई रूवाइं विउव्वित्ता पणचंति एवमाइ विभासेजा जहा विजयस्स जाव सव्वओ समंता आधावेंति परिधावेंतित्ति।
शब्दार्थ - भाइति - भेंट करते हैं, तिवई - त्रिपदि-पैंतरे बदलते हैं।
भावार्थ - जब अभिषेक योग्य समस्त सामग्री लाई जा चुकी तब देवराज देवेन्द्र, अच्युत अपने दस सहस्त्र सामानिक देवों, तैंतीस त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनानायकों एवं चालीस सहस्त्र अंगरक्षक देवों से घिरा हुआ, स्वाभाविक एवं विक्रिया जनित उत्तम कमलों पर रखे हुए, सुगंधित उत्तम जल से आपूर्ण, चंदन-चर्चित गलवे (ऊपरी भाग) में मोली बांधे हुए, कमलों-उत्पलों से ढके हुए, करसंपुटों से उठाए हुए १००८ स्वर्ण कलशों यावत् १००८ मिट्टी के कलशों यावत् सब प्रकार के जल, मृतिकाओं, काषायिक द्रव्यों यावत् सब प्रकार की औषधियों एवं सफेद सरसों द्वारा सब प्रकार की ऋद्धि वैभव यावत् तुमुल वाद्य निनादपूर्वक भगवान् तीर्थंकर का महान् अभिषेक करता है। ___अच्युतेन्द्र द्वारा अभिषेक किए जाते समय अत्यन्त हर्ष एवं प्रसन्नता के साथ अन्य इन्द्र आदि देव छत्र, चंवर, धूपदान, पुष्पगंध युक्त पदार्थ यावत् इन्हें हाथों में लिए परितोष पूर्वक यावत् वज्र त्रिशूल हाथ में लिए हुए, हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। इससे सम्बन्धित वर्णन जीवाभिगम सूत्र में आए हुए विजय देव के अभिषेक वृत्तांत के सदृश है यावत् कतिपय देव वहाँ जल का छिड़काव करते हैं, सम्मान करते हैं, उपलिप्त करते हैं।
यों उसे पवित्र एवं उत्तम बनाकर सभी गलियों को बाजार की तरह स्वच्छ बना देते हैं यावत् वह स्थान गंधवर्तिका की तरह महक से गमगमा उठता है।
कतिपय-कतिपय देव चाँदी, सुवर्ण हीरे, आभूषण, पत्र, पुष्प, फल, बीज, मालाएं, सुगंधित द्रव्य, हिंगुल यावत् सुगंधित पदार्थों का चूर्ण बरसाते हैं। कुछेक मांगलिक द्रव्य स्वरूप चांदी के प्रतीक भेंट करते हैं यावत् कई सुगंधित पदार्थों का चूर्ण भेंट करते हैं। कुछ चार प्रकार के वाद्य बजाते हैं-यथा १. तंतुवाद्य, वीणा आदि २. वितत - ढोल, मृदंग आदि ३. घन - नगाड़े आदि ४. सुषिर - बांसुरी आदि।
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