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पंचम वक्षस्कार - अधोलोक की दिक्ककुमारियों द्वारा समारोह
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जोयणपरिमण्डलं से जहाणामए-कम्मगरदारए सिया जाव तहेव जं तत्थ तणं वा पत्तं वा कटुं वा कयवरं वा असुइमचोक्खं पूइयं दुन्भिगंधं तं सव्वं आहुणिय २ एगंते एडेंति २ त्ता जेणेव भगवं तित्थयरे तित्थयरमाया य तेणेव उवागच्छंति २ त्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमायाए य अदूरसामंते आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति। __शब्दार्थ - वत्थव्वया - वास्तव्य-निवासिनी, महत्तरियाओ - महत्तरिकाएं-गौरवशालिनी, कुच्छि - कोख (कुक्षि), जगप्पईवदाइए - जगत् को तीर्थंकर रूप प्रदीपक देने वाली, चक्खुणोनेत्र स्वरूप, मुत्तस्स - मूर्त-प्रत्यक्ष, वच्छल - वात्सल्यमय, मग्गदेसिय - मार्गदेशक, वागिद्धिविभुपभुस्स - वाणी वैभव के व्यापक प्रभाव से युक्त, जिणस्स - राग-द्वेष विजेता, वाणिस्स - अतिशय-ज्ञान युक्त, णायगस्स - नायक-धार्मिक जगत् के स्वामी, बुहस्स - स्वयंबुद्ध, बोहगस्स - तत्त्वबोध प्रदायक, णाहस्स - नाथ, णिम्ममस्स - ममत्वशून्य, जंसियशस्वी, कत्थासि - कृतार्थ, अहेलोगवत्थाओ - अधोलोकवर्तिनी, भाइयव्वं - डरना चाहिए, सिवेण - कल्याणकारी, मउएणं - मृदुल, मारुएणं - वायुद्वारा, अणुधुएणं - ऊपर नहीं जाने वाले, पिण्डिम - पुंजी भूत, णीहारिमेणं - प्रसृत होने वाले, आगायमाणीओ - मंद स्वर से गान प्रारम्भ करती हुईं। . भावार्थ - जब एक-एक चक्रवर्ती विजय में तीर्थंकर समुत्पन्न होते हैं उस काल - तीसरे चौथे आरक में, उस समय-आधी रात के समय भोगकरा, भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, तोयधारा, विचित्रा, पुष्पमाला एवं अनिंदिता संज्ञक अधोलोकवासिनी आठ दिक्कुमारियों के जो अपने-अपने कूटों पर, अतीव सुंदर अलंकृत प्रासादों में चार-चार सहस्त्र सामानिक देवों, परिवार सहित चार-चार महत्तरिकाओं सात-सात सेनाओं, सात-सात सेनाधिपतियों, सोलहसोलह सहस्त्र आत्मरक्षक देवों एवं अन्य अनेकानेक भवनपति तथा वाणव्यंतर देवों एवं देवियों से घिरी हुई नृत्य, गीत, वाद्य यावत् सुखोपभोग में निरत रहती हैं, आसन चलायमान होते हैं। जब यह देखती हैं तो अपने अवधिज्ञान का प्रयोग कर भगवान् तीर्थंकर को देखती है। वे परस्पर संबोधित कर कहती हैं - जम्बूद्वीप में भगवान् तीर्थंकर का जन्म हुआ है। भूत, वर्तमान एवं भविष्य में होने वाली अधोलोक निवासिनी हम आठ महत्तरिका दिशाकुमारियों का यह परम्परा प्रसूत आचार है कि हम भगवान् तीर्थंकर का जन्मोत्सव मनाएं। परस्पर यों संलाप कर उनमें से
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