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________________ १८. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र तथा लम्बाई पर्वत के सदृश ही है। वे अपने दोनों पार्यों में दो-दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो-दो वनखण्डों से घिरी हुई हैं। पद्मवरवेदिकाएँ अर्द्ध योजन ऊँची तथा पाँच सौ धनुष चौड़ी हैं। ये पर्वत जितनी ही लम्बी हैं। वनखण्ड भी वेदिकाओं जितने ही लम्बे हैं। पद्मवरवेदिकाओं एवं वनखण्डों का वर्णन पूर्ववत् ज्ञातव्य है। विद्याधर श्रेणियों का स्वरूप (१४) विज्जाहरसेढीणं भंते! भूमीणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते? .. गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं, तणेहिं उवसोभिए, तं जहा - कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव। तत्थ णं दाहिणिल्लाए विज्जाहरसेडीए गगणवल्लभपामोक्खा पण्णासं विज्जाहरणगरावासा पण्णत्ता, उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए रहणेउरचक्कवालपामोक्खा सहि विज्जाहरणगरावासा पण्णत्ता, एवामेव सपुव्वावरेणं दाहिणिल्लाए, उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए एगंदसुत्तरं विज्जाहरणगरावाससयं भवतीतिमक्खायं, ते विज्जाहरणगरा रिद्धस्थिमियसमिद्धा, पमुइयजणजाणवया जाव पडिरूवा। तेसु णं विज्जाहरणगरेसु विज्जाहररायाणो परिवसंति महयाहिमवंतमलयमंदरमहिंदसारा रायवण्णओ भाणियव्वो। शब्दार्थ - केरिसए - कैसे, आयार - आकार, भाव - स्वरूप, अक्खायं - आख्यात हुआ है-कहा गया है। भावार्थ - हे भगवन्! विद्याधर श्रेणियों की भूमि का आकार, स्वरूप कैसा बतलाया गया है? हे गौतम! उनका भू भाग अत्यंत समतल एवं सुंदर है। वह मुरज के चर्मनद्ध - चर्म निर्मित ऊपरी भाग की तरह यावत् समतल है। वह नाना प्रकार की कृत्रिम तथा प्राकृतिक मणियों एवं तृणादि वनस्पतियों से सुशोभित है। दक्षिणवर्ती विद्याधर श्रेणी में गगनवल्लभ आदि पचास विद्याधरों के नगर हैं। उत्तरवर्ती विद्याधर श्रेणी में रथनूपुर चक्रवाल आदि साठ नगर हैं। इस प्रकार दक्षिणवर्ती एवं उत्तरवर्ती दोनों विद्याधर श्रेणियों के कुल एक सौ दस नगर हैं। वे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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