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________________ प्रथम वक्षस्कार - वैताढ्य पर्वत का वर्णन पात डोहाडिआओ, जमलजुयलकवाडघणदुप्पवेसाओ, णिच्चंधयारतिमिस्साओ, ववगयगहचंदसूरणक्खत्तजोइसप्पहाओ जाव पडिरूवाओ, तं जहा - तमिसगुहा चेव खंडप्पवायगुहा चेव। तत्थ णं दो देवा महिटिया, महज्जुईया, महाबला, महायसा, महासोक्खा, महाणुभागा, पलिओवमट्टिईया परिवसंति, तंजहा - कयमालएचेवणट्टमालए चेव। तेसि णं वणसंडाणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ। वेअहस्स पव्वयस्स उभओ पासिं दस दस जोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता एत्थ णं दुवे विज्जाहरसेढीओ पण्णत्ताओ-पाईणपडीणाययाओ, उदीणदाहिणवित्थिण्णाओ, दस दस जोयणाई विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं, दोहिं वणसंडेहिं संपरिक्खित्ताओ, ताओ णं पउमवरवेइयाओ अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पञ्च धणुसयाई विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं, वण्णओ गेयव्वो, वणसंडावि पउमवरवेइयासमगा आयामेणं, वण्णओ। शब्दार्थ - कवाड - कपाट, णिच्च - नित्य, अंधयारतिमिस्साओ - घोर अंधकार युक्त, ववगय - व्यपगत-रहित, महाणुभागा - अत्यंत प्रभाव युक्त। भावार्थ - वैताढ्य पर्वत के पूर्व एवं पश्चिम में दो गुफाएँ हैं। वे उत्तर-दक्षिण एवं पूर्वपश्चिम में क्रमशः लम्बी-चौड़ी हैं। वे पचास योजन लम्बी, बारह योजन चौड़ी तथा आठ योजन ऊंची हैं। उनके वज्ररत्नमय-हीरकनिर्मित कपाट हैं। वे दो-दो भागों-फलकों के रूप में बने हुए हैं, समस्थित एवं सघन-छिद्ररहित हैं। जिसके कारण गुफाओं में प्रवेश कर पाना दुःशक्यकठिन है। उन दोनों गुफाओं में नित्य अंधकार रहता है। अतएव वे ग्रह, चंद्र, सूर्य एवं नक्षत्रों के प्रकाश से रहित हैं। सुन्दर एवं मनोज्ञ हैं। उनके नाम तमिस्रगुफा एवं खण्डप्रपात गुफा हैं। कृतमालक तथा नृत्यमालक नामक दो देव वहाँ निवास करते हैं। वे अत्यंत ऐश्वर्य, द्युति, बल, यश, सुख एवं सौभाग्ययुक्त हैं। उनकी स्थिति-आयुष्य एक पल्योपम कालपरिमित है। . उन वनखण्डों के भूमिभाग अत्यंत समतल तथा रमणीय हैं। वैताढ्य पर्वत के दोनों ओर दस-दस योजन की ऊँचाई पर दो विद्याधर श्रेणियाँ - विद्याधरों के आवासों की पंक्तियाँ-कतारें हैं। वे पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ी है। उनकी ऊँचाई दस-दस योजन परिमित है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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