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प्रथम वक्षस्कार - विद्याधर श्रेणियों का स्वरूप
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विद्याधर नगर वैभव, सुरक्षा और समृद्धि से युक्त हैं। वहाँ के जन निवासी, जानपद-अन्य स्थानों से आए हुए व्यक्ति अत्यंत प्रसन्न हैं यावत् वे नगर बड़े ही सुंदर, मनोज्ञ, दर्शनीय एवं प्रतिरूप हैं। ___उन विद्याधर नगरों-राजधानियों में विद्याधर राजा निवास करते हैं। वे महत्ता में महा हिमवान पर्वत के तुल्य तथा प्रधानता एवं विशिष्टता में मलय, मेरू एवं महेन्द्र पर्वतों के सदृश हैं। राजाओं का वर्णन अन्य आगमों के अनुरूप योजनीय है। .
(१५) विज्जाहरसेढीणं भंते! मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते?
गोयमा! ते णं मणुया बहुसंघयणा, बहुसंठाणा, बहुउच्चत्तपज्जवा, बहुआउपज्जवा जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
तासिणं विज्जाहरसेढीणंबहुसमर-मणिज्जाओभूमिभागाओवेयड्डस्सपव्वयस्स उभओ पासिं दस दस जोयणाई उड्ढं उप्पइत्ता एत्थ णं दुवे आभिओगसेढीओ पण्णत्ताओ-पाईणपडीणाययाओ, उदीणदाहिणविच्छिण्णाओ, दस दस जोयणाई विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ताओ वण्णओ दोण्हवि पव्वयसमियाओ आयामेणं। ____ भावार्थ - हे भगवन्! विद्याधर श्रेणियों के मनुष्यों का आकार तथा स्वरूप कैसा परिज्ञापित हुआ है? . . हे गौतम! वे मनुष्य बहुविध संघनन, संस्थान, ऊँचाई तथा आयुष्य युक्त हैं यावत् उनमें कतिपय निर्वाण प्राप्त करते हैं, समस्त दुःखों का अन्त करते हैं। .. ___उन विद्याधर श्रेणियों के बहुत समतल एवं रमणीय भूभाग के वैताढ्य पर्वत के दोनों पाश्र्यों में दस-दस योजन ऊपर दो आभियोगिक देवों, शक्र, लोकपाल आदि के आज्ञापालक देवों की आवास-पंक्तियाँ हैं, जो पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ी हैं। उनकी चौड़ाई दस-दस योजन तथा लम्बाई पर्वत के सदृश है। वे दोनों श्रेणियाँ अपने दोनों ओर दो-दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो-दो वनखण्डों से घिरी हैं। इन दोनों की लम्बाई वैताढ्य पर्वत के सदृश है। इनका वर्णन पूर्वानुसार योजनीय है।
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