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________________ ३३२ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र -*-**------------9-14-0--04---- हे भगवन्! यह वर्षधर पर्वत शिखरी नाम से क्यों पुकारा जाता है? हे गौतम! शिखरी वर्षधर पर्वत पर बहुत से शिखर उसे जैसी आकृति में विद्यमान हैं, सम्पूर्णतः रत्नमय हैं यावत् वहाँ शिखरी संज्ञक देव निवास करता है। इसी कारण यह इस नाम से अभिहित हुआ है। ऐरावत वर्ष (१४४) कहि णं भंते! जम्बुद्दीवे दीवे एरावए णामं वासे पण्णत्ते? गोयमा! सिहरिस्स० उत्तरेणं उत्तरलवणसमुद्दस्स दक्खिणेणं पुरत्थिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं एत्थ णं जम्बुद्दीवे दीवे एरावए णामं वासे पण्णत्ते, खाणुबहुले कंटगबहुले एवं जच्चेव भरहस्स वत्तव्वया सच्चेव सव्वा णिरवसेसा णेयव्वा सओअवणा सणिक्खमणा सपरिणिव्वाणा णवरं एरावओ चक्कवट्टी एरावओ देवो, से तेणटेणं० एरावए वासे २। ॥ चउत्थो वक्खारो समत्तो॥ भावार्थ - हे भगवन्! जम्बूद्वीप में ऐरावत नामक वर्ष-क्षेत्र कहाँ कहा गया है? हे गौतम! शिखरी वर्षधर पर्वत की उत्तर दिशा में उत्तरवर्ती लवण समुद्र की दक्षिण दिशा में, पूर्व दिग्वर्ती लवण समुद्र की पश्चिम दिशा में एवं पश्चिमवर्ती लवण समुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के भीतर ऐरावत नामक क्षेत्र बतलाया गया है। वह स्थाणु-सूखे काठ की बहुलता से युक्त है तथा वहाँ कांटों की भरमार है, इत्यादि इसका समस्त वर्णन भरत क्षेत्र के तुल्य है। वह षट्खण्ड साधन, निष्क्रमण-दीक्षा एवं परिनिर्वाण-मोक्ष सहित है अथवा ये वहाँ साध्य हैं। इतना अन्तर है - वहाँ ऐरावत नामक चक्रवर्ती होता है। वहाँ का ऐरावत नामक अधिष्ठायक देव है। इसी कारण वह इस नाम से पुकारा जाता है। ॥ चौथा वक्षस्कार समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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