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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
हैमवत क्षेत्र की तरह ही हैरण्यवत क्षेत्र का वर्णन ज्ञातव्य है। इतना अन्तर है - इसकी जीवा दक्षिण दिशा में है तथा धनुपृष्ठ भाग उत्तर दिशा में है। अवशिष्ट समस्त वर्णन हैमवत क्षेत्र के समान है।
हे भगवन्! हैरण्यवत क्षेत्र में माल्यवत् पर्याय नामक वृत्त वैताढ्य पर्वत किस स्थान पर कहा गया है?
हे गौतम! सुवर्णकूला महानदी की पश्चिम दिशा में, रुप्यकूला महानदी की पूर्व दिशा में तथा हैरण्यवत क्षेत्र के ठीक बीच में वृत्त वैताढ्य संज्ञक पर्वत आख्यात हुआ है।
शब्दापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत के समान ही माल्यवत् पर्याय वृत्त वैताढ्य पर्वत का वर्णन है। उस पर उस जैसे प्रभा, वर्ण एवं आभायुक्त उत्पल एवं पद्म आदि विविध प्रकार के कमल है। वहाँ अत्यंत समद्धिमान यावत् एक पल्योपम स्थितिक प्रभास नामक देव रहता है। यही कारण है कि वह पर्वत इस नाम से पुकारा जाता है। इस देव की राजधानी उत्तर दिशा में है।
हे भगवन्! हैरण्यवत् क्षेत्र इस नाम से क्यों पुकारा जाता है?
हैरण्यवत् क्षेत्र रुक्मी एवं शिखरी संज्ञक वर्षधर पर्वतों से दो तरफ से घिरा हुआ है। वह नित्य हिरण्यस्वर्ण देता है, छोड़ता है, विसर्जित करता है तथा प्रकाशित करता है। वहाँ हैरण्यवत नामक देव रहता है। इसी कारण वह इस नाम से आख्यात हुआ है।
शिखरी वर्षधर पर्वत
(१४३) कहि णं भंते! जम्बुद्दीवे दीवे सिहरी णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते?
गोयमा! हेरण्णवयस्स उत्तरेणं एरावयस्स दाहिणेणं पुरथिमलवणसमुद्दस्स० पच्चत्थिम-लवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एवं जह चेव चुल्लहिमवंतो तह चेव सिहरीवि णवरं जीवा दाहिणेणं धणुं उत्तरेणं अवसिटुं तं चेव पुण्डरीए दहे सुवण्णकूला महाणई दाहिणेणं णेयव्वा जहा रोहियंसा पुरत्थिमेणं गच्छइ, एवं जह चेव गंगासिन्धुओ तह चेव रत्तारत्तवईओ णेयव्वाओ पुरत्थिमेणं रत्ता पच्चत्थिमेणं रत्तवई अवसिटुं तं चेव (अवसेसं भाणियव्वंति)।
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