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________________ चतुर्थ वक्षस्कार - नीलवान् वर्षधर पर्वत ३२३ गाहाओ - मंदर १ मेरु, २ मणोरम, ३ सुदंसण, ४ सयंपभे य, ५ गिरिराया, ६ रयणोच्चय, ७ सिलोच्चय, ८ मज्झे लोगस्स, ६ णाभी य १०॥१॥ अच्छे य ११, सूरियावत्ते १२, सूरियावरणे १३, तिया। उत्तमे १४, य दिसादी य १५, वडेंसेति १६ य सोलसे॥२॥ से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-मंदरे पव्वए २? गोयमा! मंदरे पव्वए मंदरे णामं देवे परिवसइ महिड्डिए जाव पलिओवमट्टिइए, से तेणट्टेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-मंदरे पव्वए २, अदुत्तरं तं चेवत्ति। भावार्थ - हे भगवन्! मंदर पर्वत में कितने नाम वर्णित हुए हैं? हे गौतम! मंदर पर्वत के सोलह नाम कहे गए हैं - १. मंदर २. मेरु ३. मनोरम ४. सुदर्शन ५. स्वयंप्रभ ६. गिरिराज ७. रत्नोच्चय ८. शिलोच्चय ६. लोकमध्य १०. लोकनाभि ११: अच्छ १२. सूर्यावर्त १३. सूर्यावरण १४. उत्तम १५. दिगादि १६. अवतंस। - हे भगवन्! वह. मंदर पर्वत किस कारण कहलाता है? हे गौतम! मंदर पर्वत पर मंदर नामक अत्यन्त समृद्धिशाली यावत् एक पल्योपम आयुष्य युक्त देव निवास करता है। इसलिए वह मंदर नाम से अभिहित हुआ है अथवा उसका यह नाम शाश्वत है। - नीलवान् वर्षधर पर्वत (१३६) कहि णं भंते! जम्बुद्दीवे दीवे णीलवंते णामं वासहरपव्वए पण्णते? गोयमा! महाविदेहस्स वासस्स उत्तरेणं रम्मगवासस्स दक्खिणेणं पुरथिमिल्ल लवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुहस्स पुरत्थिमेणं एत्थ णं जम्बुद्दीवे २ णीलवंते णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते, पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे णिसह-वत्तव्वया णीलवंतस्स भाणियव्वा, णवरं जीवा दाहिणेणं धणुं उत्तरेणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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