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________________ ३१६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र शब्दार्थ - ओगाहिऊण - आगे जाकर । भावार्थ - हे भगवन्! मंदर पर्वत पर सौमनस वन किस स्थान पर प्रतिपादित हुआ है ? हे गौतम! नंदनवन के अत्यधिक समतल एवं सुंदर भूमिभाग में ६२५०० योजन ऊपर जाने पर मंदर पर्वत पर सौमनसवन आता है। वह चक्रवत विस्तार की दृष्टि से ५०० योजन विस्तीर्ण है। इस प्रकार कंकण के आकार का है। वह चारों ओर से मंदर पर्वत को घेरे हुए है। वह पर्वत से बाहर की ओर ४२७२- योजन विस्तीर्ण है। पर्वत के बाहरी भाग से लगी हुई उसकी ३२७२- योजन विस्तार युक्त, है । ८ ६ ११ परिधि १३५११- योजन है। वह पर्वत के भीतरी भाग ८ ११ योजन है। ११ ३ ११ पर्वत के भीतरी भाग से लगी हुई - उसकी परिधि १०३४६वह एक पद्मवरवेदिका एवं वनखण्ड द्वारा चारों ओर से आवृत्त है। इसका विस्तार युक्त वर्णन पूर्ववत् योजनीय है। वह वन कृष्ण वर्ण, कृष्ण आभा से आपूर्ण है यावत् देव - देवियाँ विश्राम करते हैं, आश्रय लेते हैं। कूटों के सिवाय अन्य सारा वर्णन नंदनवन के तुल्य है। उसके आगे जाकर शक्रेन्द्र यावत् ईशानेन्द्र के सुंदर प्रासाद हैं। पंडक वन Jain Education International (१३५) कहि णं भंते! मंदरपव्वए पंडगवणे णामं वणे पण्णत्ते ? गोयमा ! सोमणसवणस्स बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ छत्तीसं जोयणसहस्साइं उड्डुं उप्पइत्ता एत्थ णं मंदरे पव्वए सिहरतले पंडगवणे णामं वणे पण्णत्ते चत्तारि चउणउए जोयणसए चक्कवालविक्खंभेणं वट्टे वलयागार - र-संठाणसंठिए, जेणं मंदरचूलियं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ तिण्णि जोयणसहस्साई एगं च बावट्ठ जोयणसयं किंचिंविसेसाहिय परिक्खेवेणं, से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं जाव किण्हे० देवा आसयंति०, पंडगवणस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं मंदरचूलिया णामं चूलिया पण्णत्ता चत्तालीसं जोयणाई उड्डुं उच्चत्तेणं मूले बारस जोयणाइं विक्खंभेणं मज्झे अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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