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चतुर्थ वक्षस्कार - मंदर पर्वत
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इसी प्रकार मंदर पर्वत के पश्चिमी पार्श्व का वर्णन योजनीय है। वहाँ शीतोदानदी के दक्षिणी तट पर ये विजय कहे गए हैं -
. गाथा - १. पक्ष्म २. सूपक्ष्म ३. महापद्म ४. पक्ष्मकावती ५. शंख ६. कुमुद ७. नलिन ८. नलिनावती॥१॥
___ इनकी राजधानियाँ इस प्रकार हैं - गाथा - १. अश्वपुरी २. सिंहपुरी ३. महापुरी ४. विजयपुरी ५. अपराजिता ६. अरजा ७. अशोका ८. वीतशोका ॥२॥
वक्षस्कार पर्वत ये हैं - १. अंक २. पक्ष्म ३. आशीविष ४. सुखावह।
इस कम से कूटों के तुल्य नाम युक्त दो-दो विजय, दिशा-विदिशाएं शीतोदा का दक्षिणी एवं उत्तरीमुख वन ये सब परिज्ञेय हैं।
शीतोदा के उत्तरी पार्श्व में ये विजय अभिहित हुए हैं - ___ गाथा - १. वप्र २. सुवप्र ३. महावप्र ४. वप्रकावती ५. वल्गु ६. सुवल्गु ७. गंधिल ८. गंधिलावती ॥१॥ . राजधानियाँ निम्नांकित हैं - १. विजया २. वैजयंती ३. जयंती ४. अपराजिता ५. चक्रपुरी . ६. खड्गपुरी ७. अवध्या ८. अयोध्या॥२॥ __ वक्षस्कार पर्वत ये हैं - १. चन्द्र २. सूर ३. नाग ४. देवपर्वत।
क्षीरोदा तथा शीत स्त्रोता नामक नदियाँ शीतोदा महानदी के दक्षिणी किनारे पर अन्तर्वाहिनी नदियाँ हैं।
- उर्मिमालिनी, फेनमालिनी तथा गंभीरमालिनी नदियाँ शीतोदामहानदी के उत्तर दिशावर्ती विजयों की अन्तर्वाहिनी नदियाँ हैं। इस क्रम में दो-दो कूट अपने-अपने विजय के अनुरूप नाम वाले बतलाए गए हैं - वे दो-दो कूट स्थिर हैं- १. सिद्धायतन कूट तथा २. वक्षस्कार पर्वत सदृश नामक युक्त कूट।
मंदर पर्वत
(१३२) कहि णं भंते! जम्बुद्दीवे २ महाविदेहे वासे मंदरे णामं पव्वए पण्णत्ते? गोयमा! उत्तरकुराएं दक्खिणेणं देवकूराए उत्तरेणं पुव्वविदेहस्स वासस्स
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