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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
हे भगवन्! सौमनस वक्षस्कार पर्वत के कितने कूट निरूपित हुए हैं? हे गौतम! उसके सात कूट निरूपित हुए हैं -
गाथा - १. सिद्धायतन कूट २. सौमनसकूट ३. मंगलावतीकूट ४. देवकुरूकूट ५. विमलकूट ६. कंचनकूट ७. वशिष्टकूट।
ये सभी कूट ५०० योजन ऊंचे हैं। इनका विस्तृत वर्णन गंधमादन वक्षस्कार पर्वत के कूटों के तुल्य है। इतना अंतर है - विमलकूट एवं कंचनकूट पर सुवत्सा एवं वत्समित्रा नामक देवियाँ निवास करती हैं। अवशिष्ट कूटों पर उनके नामानुरूप देव निवास करते हैं। दक्षिण में इनकी . राजधानियाँ हैं।
देवकुरु
(१२६) कहि णं भंते! महाविदेहे वासे देवकुरा णामं कुरा पण्णत्ता?
गोयमा! मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणणं णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं विजुप्पहस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं सोमणसवक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे देवकुरा णामं कुरा पण्णत्ता, पाईणपडीणायया उदीणदाहिण-विच्छिण्णा इक्कारस्स जोयणसहस्साई अट्ट य बायाले जोयणसए दुण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खम्भेणं जहा उत्तरकुराए वत्तव्वया जाव अणुसज्जमाणा पम्हगंधा मियगंधा अममा सहा तेयतली सणिचारीति ६।
भावार्थ - हे भगवन्! महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत देवकुरु का स्थान कहाँ बतलाया गया है ?
हे गौतम! मंदर पर्वत के दक्षिण में, निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, विद्युतप्रभ वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में तथा सौमनस वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में महाविदेह क्षेत्र में देवकुरु का स्थान बतलाया गया है।
देवकुरु पूर्व-पश्चिम लम्बा एवं उत्तर-दक्षिण चौड़ा है। वह ११८४२- योजन विस्तार युक्त है। इसका शेष वर्णन उत्तरकुरु के तुल्य है यावत् यहाँ कमल सौरभ एवं कस्तूरीमृग की सुगंधि से युक्त, ममत्वरहित, सहिष्णु, विशिष्ट तेज युक्त तथा शनैश्चारी-धीमी गति से युक्त ये छह प्रकार के मनुष्य कहे गये हैं।
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