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चतुर्थ वक्षस्कार - सौमनस वक्षस्कार पर्वत
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पुरस्थिमेणं मंगलावई विजयस्स पच्चत्थिमेणं देवकुराए० पुरत्थिमेणं एत्थ णं जम्बुद्दीवे २ महाविदेहे वासे सोमणसे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते, उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे जहा मालवंते वक्खारपव्वए तहा णवरं सव्वरययामए अच्छे जाव पडिरूवे, णिसहवासहरपव्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाई उई उच्चत्तेणं चत्तारि गाउयसयाई उव्वेहेणं सेसं तहेव सव्वं णवरं अट्ठो से गोयमा! सोमणसे णं वक्खारपव्वए बहवे देवा य देवीओ य सोमा सुमणा सोमणसे य इत्थ देवे महिड्डिए जाव परिवसइ, से एएणटेणं गोयमा! जाव णिच्चे।
सोमणसे णं भंते! वक्खारपव्वए कई कूडा पण्णत्ता?
गोयमा! सत्त कूडा पण्णत्ता, तंजहागाहा - सिद्धे १ सोमणसे २ वि य बोद्धव्वे मंगलावईकूडे ३
देवकुरु ४ विमल ५ कंचण ६ वसिट्ठकूडे ७ य बोद्धव्वे॥१॥ एवं सव्वे पंचसइया कूडा, एएसिं पुच्छा दिसिविदिसाए भाणियव्वा जहा गंधमायणस्स, विमलकंचणकूडेसु णवरं देवयाओ सुवच्छा वच्छमित्ता य अवसिट्टेसु कूडेसु सरिसणामया देवा रायहाणीओ दक्खिणेणंति।
भावार्थ - हे भगवन्! जम्बूद्वीप में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत सौमनस नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ बतलाया गया है?
हे गौतम! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में मंदर पर्वत के दक्षिण-पूर्व में, मंगलावती विजय के पश्चिम में, देवकुरु के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में सौमनस नामक वक्षस्कार पर्वत निरूपित हुआ है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा एवं पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। वह माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के सदृश है। इतना अन्तर है - वह सर्वथा रत्नमय, उज्वल यावत् सुन्दर है। वह निषध वर्षधर पर्वत के निकट ४०० योजन ऊँचा है। वह भूमि के भीतर चार सौ कोस गहरा गड़ा है। बाकी समस्त वर्णन माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत जैसा है।
हे. गौतम! सौमनस वक्षस्कार पर्वत पर बहुत से सौम्य, सुमना-उत्तम मन भावनामय देवदेवियाँ आश्रय लेते हैं, विश्राम करते हैं यावत् उनका अधिष्ठाता अत्यन्त समृद्धिशाली सौमनस देव वहाँ रहता है। हे गौतम! उसका यह नाम नित्य यावत् शाश्वत है।
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