SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६६ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र -- - वहाँ तप्तजला नामक नदी है। महावत्स विजय के अपराजिता नामक राजधानी है। वैश्रमणकूट वक्षस्कार पर्वत पर वत्सावती विजय है। उसकी प्रभाकरी नामक राजधानी है। वहाँ पर मत्तजला नामक नदी है। रम्य विजय की अंकावती नामक राजधानी है। अंजन वक्षस्कार पर्वत पर रम्यक् विजय है, उसकी पद्मावती नामक राजधानी है। यहाँ उन्मत्तजला नामक महानदी है। रमणीय विजय की शुभा नामक राजधानी है। मातंजन वक्षस्कार पर्वत पर मंगलावती विजय है। उसकी रत्नसंचया नामक राजधानी है। शीता महानदी का जैसा उत्तरी पार्श्व है, वैसा ही दक्षिण दिशावर्ती पार्श्व है। दक्षिणी. शीतामुख वन उत्तरी शीतामुख वन के सदृश है। वहाँ वक्षस्कार इस प्रकार हैं - त्रिकूट, वैश्रमणकूट, अंजनकूट, मातंजनकूट (तप्तजला, मत्तजला एवं उन्मत्तजला संज्ञक नदियाँ हैं।) विजय इस प्रकार हैं - गाथा - वत्स विजय, सुवत्स विजय, महावत्स विजय, वत्सकावती विजय, रम्य विजय, रम्यक विजय, रमणीय विजय तथा मंगलावती विजय॥१॥ राजधानियाँ इस प्रकार हैं - १. सुसीमा २. कुण्डला ३. अपराजिता ४. प्रभंकरा ५. अंकावती ६. पद्मावती ७. शुभा एवं ८. रत्नसंचया। __वत्स विजय की दक्षिण दिशा में निषध पर्वत है। उत्तर दिशा में शीता महानदी है। पूर्व दिशा में दक्षिणी शीतामुख वन है तथा पश्चिमी दिशा में त्रिकूट वक्षस्कार पर्वत है। उसकी सुसीमा राजधानी है, जिसकी प्रमाण, वर्णन विनीता राजधानी के तुल्य है। ___वत्स विजय के अनंतर त्रिकूट पर्वत उसके पश्चात् सुवत्स विजय, इसी क्रम से तप्तजला नदी महावत्सविजय, वैश्रमणकूट वक्षस्कार पर्वत, वत्सावती विजय, मत्तजला नदी, रम्य विजय, अंजन वक्षस्कार पर्वत, रम्यक् विजय, उन्मत्तजला नदी, रमणीय विजय, मातंजन वक्षस्कार पर्वत एवं मंगलावती विजय है। सौमनस वक्षस्कार पर्वत (१२५) कहि णं भंते! जम्बुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सोमणसे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते? गोयमा! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं मंदरस्स पव्वयस्स दाहिण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy