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चतुर्थ वक्षस्कार - पुष्कलावती विजय
२६१ ------------------08-08-08-08-08-08-28-08-08-18-18-10-08-04-10-14-08-28-08-08-08-10-19-19-12-28-08- विजयस्स पचत्थिमेणं णीलवंतस्स दक्खिणेणं सीयाए उत्तरेणं एत्थ णं एगसेले णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते चित्तकूडगमेणं णेयव्वो जाव देवा आसयंति०, चत्तारि कूडा, तंजहा-सिद्धाययणकूडे एगसेलकूडे पुक्खलावत्तकूडे पुक्खलावईकूडे, कडाणं तं चेव पंचसइयं परिमाणं जाव एगसेले य० देवे महिड्डिए।
भावार्थ - हे भगवन्! महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत एकशैल वक्षस्कार पर्वत किस स्थान पर कहा गया है?
हे गौतम! पुष्कलावत चक्रवर्ती विजय के पूर्व में, पुष्कलावर्ती चक्रवर्ती विजय के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में तथा शीता महानदी के उत्तर में, महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत एकशैल वक्षस्कार पर्वत कहा गया है। देव-देवियाँ वहाँ आश्रय लेते हैं यावत् यहाँ तक का वर्णन चित्रकूट के सदृश है।
इसके चार शिखर हैं - १. सिद्धायतन कूट २. एकशैल कूट ३. पुष्कलावतकूट ४. पुष्कलावती कूट। ये ऊँचाई में पांच सौ योजन हैं यावत् यहाँ महान् ऋद्धिशाली एकशैल नामक देव निवास करता है।
पुष्कलावती विजय
(१२१) कहि णं भंते! महाविदेहे वासे पुक्खलावई णामं चक्कवट्टिविजए पण्णत्ते?
गोयमा! णीलवंतस्स दक्खिणेणं सीयाए उत्तरेणं उत्तरिल्लस्स सीयामुहवणस्स पच्चत्थिमेणं एगसेलस्स वक्खारपव्वयस्स पुरथिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे पुक्खलावई णामं विजए पण्णत्ते, उत्तरदाहिणायए एवं जहा कच्छविजयस्स जाव पुक्खलावई य इत्थ देवे० परिवसइ, से एएणटेणं०।।
. भावार्थ - हे भगवन्! महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पुष्कलावती नामक चक्रवर्ती विजय किस स्थान पर निरूपित हुआ है?
- हे गौतम! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, उत्तर दिग्वर्ती शीतामुख वन के पश्चिम में तथा एकशैल वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत
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