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________________ २६२ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र पुष्कलावती विजय निरूपित हुआ है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा है यावत् सारा वर्णन कच्छ विजय की तरह योजनीय है। वहाँ पुष्कलावती नामक देव निवास करता है। इस कारण वह पुष्कलावती विजय के नाम से अभिहित हुआ है। उत्तरवर्ती शीतामुख वन (१२२) कहि णं भंते! महाविदेहे वासे सीयाए महाणईए उत्तरिल्ले सीयामुहवणे णाम वणे पण्णत्ते? ___ गोयमा! णीलवंतस्स दक्खिणेणं सीयाए उत्तरेणं पुरत्थिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं पुक्खलावइ चक्कवट्टिविजयस्स पुरस्थिमेणं एत्थ णं सीयामुहवणे णामं वणे पण्णत्ते, उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे सोलसजोयणसहस्साई पंच य बाणउए जोयणसए दोण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं सीयाए महाणईए अंतेणं दो जोयणसहस्साई णव य बावीसे जोयणसए विक्खंभेणं तयणंतरं च णं मायाए २ परिहायमाणे २ णीलवंतवासहरपव्वयंतेणं एगं एगूणवीसइभागं जोयणस्स विक्खंभेणंति, से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसण्डेणं संपरिक्खित्ते वण्णओ सीयामुहवणस्स जाव देवा आसयंति०, एवं उत्तरिल्लं पासं समत्तं। विजया भणिया। रायहाणीओ इमाओ खेमा १ खेमपुरा २ चेव, रिट्ठा ३ रिट्ठपुरा ४ तहा। खग्गी ५ मंजूसा ६ अवि य, ओसही ७ पुंडरीगिणी ८॥१॥ सोलस विजाहरसेढीओ तावइयाओ आभिओगसेढीओ सव्वाओ इमाओ ईसाणस्स, सव्वेसु विजएसु कच्छवत्तव्वया जाव अट्ठो रायाणो सरिसणामगा विजएसु सोलसण्हं वक्खारपव्वयाणं चित्तकूडवत्तव्वया जाव कूडा चत्तारि २ बारसण्हं णईणं गाहावइवत्तव्वया जाव उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं वणसण्डेहि य० वण्णओ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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