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________________ २६० जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र वहाँ मंगलावत नामक देव निवास करता है, इसी कारण वह मंगलावर्त्त विजय के नाम से अभिहित हुआ है। हे भगवन्! महाविदेह क्षेत्र में पंकावती कुण्ड कहाँ कहा गया है ? __ हे गौतम! मंगलावर्त्त विजय के पूर्व में, पुष्कल विजय के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितंब-ढालू प्रदेश में पंकावती कुण्ड अभिहित है। उसका प्रमाण ग्राहावती कुण्ड के तुल्य है यावत् इससे निकलती हुई पंकावती महानदी मंगलावर्त एवं पुष्कलावत विजय को दो भागों में बांटती हुई आगे बढ़ती है। इसका अवशिष्ट वर्णन ग्राहावती नदी के समान ज्ञापनीय है। . पुष्कलावती विजय (११६) कहि णं भंते! महाविदेहे वासे पुक्खलावत्ते णामं विजए पण्णत्ते? .. गोयमा! णीलवंतस्स दाहिणेणं सीयाए उत्तरेणं पंकावईए पुरत्थिमेणं एगसेलस्स वक्खार-पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं पुक्खलावत्ते णामं विजए पण्णत्ते जहा कच्छविजए तहा भाणियव्वं जाव पुक्खले य इत्थ देवे महिड्डिए० पलिओवमट्टिइए परिवसइ, से एएणटेणं०। भावार्थ - हे भगवन्! महाविदेह क्षेत्र में पुष्कलावती विजय किस स्थान पर वर्णित हुआ है? __ हे गौतम! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में शीता महानदी के उत्तर में पंकावती विजय के पूर्व में, एकशैल वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पुष्कलावर्त्त विजय कहा गया है। उसका वर्णन कच्छ विजय के सदृश है यावत् वहाँ एक पल्योपम स्थितिक महान् ऋद्धिशाली पुष्कल नामक देव निवास करता है। इस कारण वह पुष्कलावत विजय के नाम से अभिहित हुआ है। एकशैल वक्षस्कार पर्वत (१२०) कहि णं भंते! महाविदेहे वासे एगसेले णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते? गोयमा! पुक्खलावत्तचक्कवट्टिविजयस्स पुरथिमेणं पुक्खलावईचक्कवट्टि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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