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चतुर्थ वक्षस्कार - कच्छकावती विजय
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कच्छकावती विजय
(११५) कहि णं भंते! महाविदेहे वासे कच्छगावई णामं विजए पण्णत्ते?
गोयमा! णीलवंतस्स० दाहिणेणं सीयाए महाणईए उत्तरेणं दहावईए महाणईए पच्चत्थिमेणं पम्हकूडस्स० पुरथिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे कच्छगावई णामं विजए पण्णत्ते, उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे सेसं जहा कच्छस्स विजयस्स जाव कच्छगावई य इत्थ देवे०।
कहि णं भंते! महाविदेह वासे दहावईकुण्डे णामं कुंडे पण्णत्ते? - गोयमा! आवत्तस्स विजयस्स पच्चत्थिमेणं कच्छगावईए विजयस्स पुरथिमेणं णीलवंतस्स० दाहिणिल्ले णियंबे एत्थ णं महाविदेहे वासे दहावईकुंडे णामं कुण्डे पण्णत्ते सेसं जहा गाहावईकुण्डस्स जाव अट्ठो, तस्स णं दहावईकुण्डस्स दाहिणेणं तोरणेणं दहावई महाणई पवढा समाणी कच्छावई आवत्ते विजए दुहा विभयमाणी २ दाहिणेणं सीयं महाणई समप्पेइ, सेसं जहा गाहावईए।
भावार्थ - हे भगवन्! महाविदेह क्षेत्र में कच्छकावती नामक विजय कहाँ कहा गया है? ... हे गौतम! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, शीता महानदी के उत्तर में, द्रहावती महानदी के पश्चिम में, पद्मकूट वर्षधर पर्वत के पूर्व में, महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत कच्छकावती विजय कहा गया है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा एवं पूर्व-पश्मिच चौड़ा है। अवशिष्ट समस्त वर्णन कच्छ विजय के समान है यावत् वहाँ कच्छकावती नामक ऋद्धिशाली देव निवास करता है।
हे भगवन्! महाविदेह क्षेत्र में द्रहावती नामक कुण्ड कहां बतलाया गया है?
हे गौतम! आवर्त विजय के पश्चिम में, कच्छकावती विजय के पूर्व में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितंब-ढालू भाग में महाविदेह क्षेत्र में, द्रहावती कुण्ड कहा गया है। शेष वर्णन यावत् ग्राहावती कुण्ड में तुल्य है।
उस दहावती कुण्ड के दक्षिणवर्ती तोरणद्वार से द्रहावती नामक महानदी निकलती है। वह कच्छकावती विजय तथा आवर्त्त विजय को दो भागों में विभक्त करती हुई दक्षिण में शीता महानदी में मिल जाती है। अवशिष्ट वर्णन ग्राहावती की तरह है।
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