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प्रथम वक्षस्कार - भरत क्षेत्र का स्थान एवं स्वरूप
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दाहिणवित्थिण्णे, अद्धचंदसंठाणसंठिए, तिहा लवणसमुदं पुढे, गंगासिंधूहिं महाणईहिं तिभागपविभत्ते। दोण्णि अट्ठतीसे जोयणसए तिण्णि य एगूणवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया, दुहा लवणसमुदं पुट्ठा, पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा। णव जोयणसहस्साई सत्त य अडयाले जोयणसए दुवालस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं, तीसे धणुपुढे दाहिणेणं णव जोयणसहस्साइं सत्तछावढे जोयणसए एक्कं च एगूणवीसइभागे जोयणस्स किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते।
दाहिणड्डभरहस्स णं भंते! वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते? |
गोयमा! बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहा णामए-आलिंगपुक्खरेइ वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं तणेहिं उवसोभिए, तं जहा-कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव।
दाहिणड्डभरहे णं भंते! वासे मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते? . गोयमा! ते णं मणुया बहुसंघयणा, बहुसंठाणा, बहुउच्चत्तपज्जवा, बहुआउपजवा, बहूई वासाइं आउं पालेंति, पालित्ता, अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेग़इया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुयगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिज्झंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। - शब्दार्थ - अद्धचंद - अर्द्धचन्द्राकार, कित्तिम - कृत्रिम, बहुसंघयणा - अनेक संघननों में युक्त, जीवा - धनुष की प्रत्यंचा के सदृश सर्वांतिम प्रदेश पंक्ति, उच्चत्तपजवा - उच्चत्व . पर्यायुक्त - ऊँचाई युक्त, आउपजवा - आयुष्य पर्याय।
भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप में दक्षिणार्द्ध भरत क्षेत्र कहाँ बतलाया गया है? - दक्षिणार्द्ध भरत क्षेत्र वैताढ्य पर्वत के दक्षिण में, दक्षिण लवण समुद्र के उत्तर में, पूर्व लवण समुद्र के पश्चिम में एवं पश्चिम लवणसमुद्र के पूर्व में जंबूद्वीप के अंतर्गत बतलाया गया है। वह पूर्व-पश्चिम में लम्बा है और उत्तर-दक्षिण में चौड़ा है। वह अर्द्ध चन्द्राकार संस्थान में अवस्थित है। अर्थात् उसकी आकृति आधे चन्द्र के तुल्य है। वह तीन ओर से लवण समुद्र का
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