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________________ चतुर्थ वक्षस्कार - हरिसहकूट २७५ 4-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0- - -- हरिसहकूट (१०६) कहि णं भंते! मालवंते हरिस्सहकूडे णामं कूडे पण्णत्ते? गोयमा! पुण्णभद्दस्स उत्तरेणं णीलवंतस्स दक्खिणेणं एत्थ णं हरिस्सहकूडे णामं कडे पण्णत्ते एगं जोयणसहस्सं उडे उच्चत्तेणं जमगप्पमाणेणं णेयव्वं, रायहाणी उत्तरेणं असंखेज्जे दीवे अण्णंमि जम्बुद्दीवे दीवे उत्तरेणं बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं हरिस्सहस्स देवस्स हरिस्सहा णामं रायहाणी पण्णत्ता चउरासीइं जोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं बे जोयणसयसहस्साई पण्णष्टिं च सहस्साई छच्च छत्तीसे जोयणसए परिक्खेवेणं, सेसं जहा चमरचंचाए रायहाणीए तहा पमाणं भाणियव्वं, महिड्डिए महज्जुईए। से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-मालवंते वक्खारपव्वए २? गोयमा! मालवंते णं वक्खारपव्वए तत्थ तत्थ देसे २ तहिं २ बहवे सेरियागुम्मा णोमालियागुम्मा जाव मगदंतियागुम्मा, ते णं गुम्मा दसद्धवण्णं कुसुमं कुसुमेंति, जे णं तं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स बहुसमरमणिजं भूमिभागं वायविधुयग्गसालामुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति, मालवंते य इत्थ देवे महिड्डिए जाव पलिओवमट्टिइए परिवसइ, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ० अदुत्तरं च णं जाव णिच्चे। ___ भावार्थ - हे भगवन्! माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत पर हरिसहकूट किस स्थान पर कहा गया है? हे गौतम! पूर्णभद्र कूट के उत्तर में तथा नीलवान् पर्वत के दक्षिण में हरिसहकूट प्रतिपादित हुआ है। वह एक सहस्र योजन ऊँचा है। इसका आयाम-विस्तार आदि समस्त वर्णन यमक पर्वत की तरह ज्ञातव्य है। राजधानी, उत्तर में स्थित असंख्य द्वीप समुद्रों को लांघने पर दूसरे जम्बूद्वीप के अंतर्गत बारह हजार योजन जाने पर हरिसह देव की हरिसहा नामक राजधानी बतलाई गई है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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