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________________ २७६ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र 48--0--2-19-19-10-14-10-08-08-10-18-10-14-08-14-10-19-19-19-08-28-08-08-00-00-04-24-28-08-28-12-28-08-28-08-08-10--14 उसका आयाम-विस्तार ८४००० योजन है। इसकी परिधि २,६५,६३६ योजन है। बाकी का वर्णन चमरचंचा राजधानी की ज्यों कथनीय है। वह अत्यंत समृद्धि तथा द्युतिमय है। हे भगवन्! माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत यह नाम किस कारण से पड़ा? हे गौतम! माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत पर यत्र-तत्र अनेकानेक सेविकाओं, नवमल्लिकाओं यावत् मगदंतिकाओं आदि भिन्न-भिन्न पुष्पलताओं के गुल्म-समूह हैं। इन लताओं पर पाँच वर्णों के कुसुम विकसित हैं। ये लताएँ हवा द्वारा कांपती हुई अपनी टहनियों के अग्रभाग से गिरे हुए फूलों द्वारा माल्यवान् वक्षस्कार के अत्यंत समतल तथा रमणीय भू भाग को अत्यधिक सुसज्ज करती हैं। वहाँ अत्यंत समृद्धि संपन्न यावत् एक पल्योपम आयुष्यधारी माल्यवान् संज्ञक देव रहता हैं। हे गौतम! इस कारण से वह माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के नाम से पुकारा जाता है। अथवा इसका यह नाम ध्रुव यावत् नित्य है। . कच्छ-विजय (११०) कहि णं भंते! जम्बुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे कच्छे णामं विजए पण्णत्ते? गोयमा! सीयाए महाणईए उत्तरेणं णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरथिमेणं एत्थ णं जम्बुद्दीवे २ महाविदेहे वासे कच्छे णामं विजए पण्णत्ते, उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिण्णे पलियंकसंठाणसंठिए गंगासिंधूहिं महाणईहिं वेयड्डेण य पव्वएणं छब्भागपविभत्ते सोलस जोयणसहस्साई पंच य बाणउए जोयणसए दोण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं दो जोयणसहस्साई दोण्णि य तेरसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूणे विक्खंभेणंति। कच्छस्स णं विजयस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं वेयड्ढे णामं पव्वए पण्णत्ते 'जे णं कच्छं विजयं दुहा विभयमाणे २ चिट्ठइ, तंजहा - दाहिणद्धकच्छं च उत्तरद्धकच्छं चेति। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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