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चतुर्थ वक्षस्कार - जंबू पीठ एवं जंबू सुदर्शना
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पीठिका पर देवच्छंदक-दिव्य आसन लगा है। यह लम्बाई-चौड़ाई में पांच सौ धनुष तथा ऊंचाई में पांच सौ धनुष से कुछ अधिक है। जिन प्रतिमा पर्यन्त आगे का वर्णन पूर्वानुरूप योजनीय है।
. उपर्युक्त शाखाओं में से पूर्वी शाखा पर एक भवन आख्यात हुआ है। यह एक कोस लम्बा है। इतना अंतर है कि वहाँ शयनीय और बतलाया गया है। अवशिष्ट शाखाओं पर उत्तम प्रासाद हैं। अंगोपांग सहित सिंहासन तक का वर्णन पूर्वानुरूप योजनीय है।
वह जम्बू सुदर्शन बारह पद्मवर वेदिकाओं द्वारा सब ओर से परिवेष्टित है। वेदिकाओं का वर्णन पूर्वानुरूप योजनीय है। पुनश्च, वह जंबू सुदर्शन १०८ जम्बू वृक्षों से परिवेष्टित है, जो उससे आधी ऊँचाई के है। इनका भी वर्णन पूर्वानुरूप ग्राह्य है। ये जंबू वृक्ष छह पद्मवरवेदिकाओं से परिवेष्टित है। . .. जम्बू सुदर्शन के उत्तरपूर्व दिग्भाग में, उत्तर में एवं उत्तर पश्चिम दिग्भाग में अनादृत नामक देव के चार सहस्र सामानिक देवों के चार सहस्त्र जम्बू वृक्ष आख्यात हुए हैं। पूर्व में चार अग्रमहीषियों के चार जम्बू बतलाए गए हैं।
गाथाएं - दक्षिण पूर्व दिग्भाग, दक्षिण दिशा एवं दक्षिण-पश्चिम दिग्भाग में क्रमशः आठ हजार, दस हजार एवं बारह हजार जम्बू वृक्ष हैं। पश्चिम में अनीकाधिपति-सेनापति देवों के सात जम्बू हैं। चारों दिशाओं में आत्म रक्षक देवों के सोलह हजार जम्बू हैं॥१, २॥ ___ जम्बू सुदर्शन वृक्ष तीन सौ वन खण्डों द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है। उसके पूर्व में पचास योज़न पर विद्यमान प्रथम वन खंड में जाने पर एक भवन आता है, जो लम्बाई में एक कोस प्रमाण है। उसका तथा वहाँ स्थित शयनीय आदि का वर्णन पूर्वानुसार योजनीय है। अवशिष्ट दिशाओं में भी इसी प्रकार भवन कहे गये हैं। जम्बू सुदर्शना के उत्तर-पूर्व में प्रथम वनखण्ड में पचास योजन की दूरी पर पद्मा, पद्मप्रभा, कुमुदा तथा कुमुदप्रभा संज्ञक चार पुष्पकरिणियाँ हैं। ये लम्बाई में एक कोस तथा चौड़ाई में अर्द्धकोस प्रमाण हैं। वे धरती में पांच सौ धनुष गहरी हैं। इनका विशेष वर्णन अन्यत्र से ग्राह्य है। इनके बीच-बीच में श्रेष्ठ प्रासाद बने हुए हैं, जो लम्बाई में एक कोस, चौड़ाई में अर्द्धकोस तथा ऊँचाई में एक कोस से कुछ कम हैं। संबंधित उपकरणों सहित सिंहासन पर्यन्त उनका वर्णन पहले की तरह योजनीय है। इसी प्रकार अवशिष्ट विदिशाओं में भी निम्नांकित पुष्पकरिणियाँ हैं -
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