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________________ २७२ - जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र गाथाएँ - पद्मा, पद्मप्रभा, कुमुदा, कुमुदप्रभा, उत्पलगुल्मा, नलिना, उत्पला, उत्पलोज्ज्वला, गा, भंगप्रभा, अंजना, कज्जलप्रभा, श्रीकांता, श्रीमहिता, श्रीचंद्रा तथा श्रीनिलया॥ ४२॥ ___ जंबू के पूर्वदिशावर्ती भवन के उत्तर में, उत्तरपूर्व-ईशान कोण में विद्यमान श्रेष्ठ प्रासाद के दक्षिण में एक पर्वत शिखर बतलाया गया है। यह ऊँचाई में आठ योजन तथा दो योजन भूमि में गहरा है। वह भल में आठ योजन. मध्य में छह योजन तथा उपरितन भाग में चार योजन आयाम-विस्तार युक्त है। गाथा - उस शिखर की परिधि मूल में पच्चीस योजन से कुछ अधिक, बीच में अठारह योजन से कुछ अधिक तथा उपरितन भाग में बारह योजन से कुछ अधिक है, ऐसा जानना चाहिए॥ १॥ वह मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संकीर्ण तथा उपरितन भाग में पतला है। सर्वथा स्वर्णमय एवं उद्योतमय है। पद्मवरवेदिका एवं वनखंड का वर्णन पूर्वानुसार योजनीय है। अन्य शिखर भी इसी प्रकार के हैं। जंबू सुदर्शना के निम्नांकित बारह नाम आख्यात हुए हैं - ... ____ गाथाएँ - १. सुदर्शना २. अमोघा ३. सुप्रबुद्धा ४. यशोधरा ५. विदेह जम्बू ६. सौमनस्या ७. नियता ८. नित्य मंडिता ६. सुभद्रा १०. विशाला ११. सुजाता एवं १२. सुमना। जम्बू सुदर्शना पर आठ-आठ मांगलिक पदार्थ स्थापित हैं। हे भगवन्! यह वृक्ष जंबू सुदर्शना नाम से क्यों विख्यात हुआ? हे गौतम! वहाँ जम्बूद्वीप का अधिष्ठायक, परमसमृद्धिशाली अनादृत संज्ञक देव अपने चार सहस्र सामानिक देवों यावत् सोलह सहस्र आत्मरक्षक देवों का जंबूद्वीप, जंबू सुदर्शना, अनादृता संज्ञक राजधानी तथा अन्य देव-देवियों का आधिपत्य करता हुआ निवास करता है। हे गौतम! इस कारण वह वृक्ष जंबू सुदर्शना के नाम से विख्यात है। अथवा हे गौतम! जंबू सुदर्शना नाम अतीत, वर्तमान एवं भविष्य यावत् कालत्रय में ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय यावत् अवस्थित है। हे भगवन्! अनादृत देव की अनादृता राजधानी किस स्थान पर विद्यमान है? हे गौतम! जंबूद्वीप के अन्तर्गत, मंदर पर्वत के उत्तर में अनादृता राजधानी कही गई है। उसका प्रमाण आदि से संबद्ध वर्णन पूर्व वर्णित यमिका राजधानी के तुल्य है यावत् देव का उपपात-जन्म, अभिषेक आदि सारा वर्णन पूर्वानुसार योजनीय है। हे भगवन्! उत्तरकुरु को इस नाम से क्यों पुकारा जाता है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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