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________________ २७० जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र गोयमा! उत्तरकुराए० उत्तरकुरू णामं देवे परिवसइ महिहिए जाव पलिओवमट्ठिइए, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-उत्तरकुरा २, अदुत्तरं च णं जाव सासए....। शब्दार्थ - साला - शाखा, विडिमा - मध्य से ऊपर की ओर निकली हुई शाखा। भावार्थ - हे भगवन्! उत्तरकुरु के अंतर्गत जंबूपीठ संज्ञक पीठ कहाँ आख्यात हुआ है ? हे गौतम! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मंदर पर्वत के उत्तर में, माल्यवान् वक्षस्कार . पर्वत के पश्चिम में तथा शीता नाम की महानदी के पूर्वी तट पर उत्तर कुरु में जंबूद्वीप आख्यात हुआ है। यह लम्बाई-चौड़ाई में पांच सौ योजन प्रमाण है। इसकी परिधि पन्द्रह सौ इकासी योजन से कुछ अधिक है। यह पीठ मध्य में बारह योजन मोटा है। फिर क्रमशः उसका मोटापन कम होता हुआ, आखिरी शिखरों पर दो कोस मात्र रह जाता है। यह संपूर्णतः जंबूनद स्वर्ण से बना है, चमकीला है। यह एक पद्मवर वेदिका एवं एक वनखंड से चारों ओर से घिरा हुआ है। दोनों का वर्णन पूर्वानुसार ग्राह्य है। जम्बूपीठ की चारों दिशाओं में तीन-तीन सीढियाँ बतलाई गई हैं यावत् तोरण पर्यन्त इनका वर्णन पूर्ववत् योजनीय है। इस जंबूपीठ के ठीक मध्य में एक मणिपीठिका है। यह लम्बाई चौड़ाई में आठ योजन तथा मोटाई में चार योजन है। इस मणिपीठिका के ऊपर जम्बू सुदर्शना नामक वृक्ष आख्यात हुआ है। वह ऊँचाई में आठ योजन तथा जमीन में आधा योजन गहरा है। इसका स्कन्ध-तना दो योजन ऊंचा तथा आधा योजन मोटा है। उसकी शाखा छह योजन ऊँची है। यह आठ योजन विस्तीर्ण है। यों सर्वांशतः इसका आयाम-विस्तार आठ योजन से कुछ अधिक होता है। इस सुदर्शना वृक्ष का विस्तृत वर्णन इस प्रकार हैं - इसकी जड़े वज्ररत्नमय हैं। उसकी विडिमा रजतघटित है यावत् यह मन के लिए अत्यंत शांति प्रद, उल्लासमय एवं दर्शनीय है। ___ जंबू सुदर्शना की चारों दिशाओं में चार शाखाएं प्रतिपादित हुई हैं। उनके ठीक मध्य में एक सिद्धायतन है। यह लम्बाई में एक कोस, चोड़ाई में अर्द्धकोस तथा ऊँचाई में एक कोस से कुछ कम है। वह सैकड़ों खंभों पर समाश्रित है यावत् उसके द्वार पांच सौ धनुष प्रमाण ऊंचे हैं यावत् वनमालाओं का वर्णन पूर्ववत् योजनीय है। पूर्वोक्त मणिपीठिका पांच सौ धनुष लम्बी-चौड़ी तथा ढ़ाई सौ धनुष मोटी है। इस मणि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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