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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
हे गौतम! मंदर पर्वत की उत्तरदिशा में, नीलवान् वर्षधर पर्वत की दक्षिण दिशा में, गंधमादन वक्षस्कार पर्वत की पूर्वदिशा में तथा माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत की पश्चिम दिशा में उत्तरकुरु संज्ञक क्षेत्रप्रतिपादित हुआ है यह पूर्व पश्चिम दिशाओं में लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण दिशाओं में चौड़ा है। वह आकार में आधे चंद्रमा के सदृश है। वह चौड़ाई में ११८४२ - योजन है।
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उत्तर में उसकी जीवा पूर्व - पश्चिम लम्बी है । वह दोनों ओर से वक्षस्कार पर्वत का संस्पर्श करती है। पूर्वी किनारे से पूर्वी वक्षस्कार पर्वत को तथा पश्चिमी किनारे से यावत् पश्चिमी वक्षस्कार पर्वत को छूती है । यह लम्बाई में ५३००० योजन है । दक्षिण में उसके धनुपृष्ठ की परिधि ६०४१८ - योजन है।
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२५.६.
हे भगवन् ! उत्तरकुरु क्षेत्र का आकार स्वरूप किस प्रकार का है?
हे गौतम! उसका भू भाग अत्यंत समतल तथा रमणीय है। इस संबंध में सुषम-सुषमानुरूप वक्तव्यता ग्राह्य है यावत् वहाँ के मनुष्य १. पद्मगंध - कमल के समान गंध युक्त । २. मृगगंधकस्तूरी मृग से प्राप्त कस्तूरी की सुगंध के समान । ३. अ ममत्व रहित । ४. सक्षम कार्य कुशल । ५. तेतली - विशिष्ट पुण्य प्रसूत तेजोमय तथा ६. शनैश्चरी - मंद-मंद गति से चलने वाले हैं।
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यमक संज्ञक पर्वत द्वय
कहि णं भंते!
उत्तरकुराए २ जमगा णामं दुवे पव्वया पण्णत्ता ?
गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठजोयणसए चोत्तीसे चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए सीयाए महाणईए भओ कूले एत्थ णं जमगा णामं दुवे पव्वया पण्णत्ता जोयणसहस्सं उङ्कं उच्चत्तेणं अड्डाइजाइं जोयणसयाइं उव्वेहेणं मूले एगं जोयणसहस्सं आयामविक्खम्भेणं मज्झे भृद्धट्ठमार्इं जोयणसयाइं आयामविक्खम्भेणं उवरिं पंच जोयणसयाई आयामविक्खम्भेणं मूले तिण्णि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्टं जोयणसयं किंचिबिसेसाहियं परिक्खेवेणं मज्झे दो जोयणसहस्साइं तिण्णि बावत्तरे जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं उवरिं एगं जोयणसहस्सं पंच य एकासीए जोयणसए
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