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________________ चतुर्थ वक्षस्कार - उत्तरकुरु हे भगवन्! क्या यह सुगंध ऐसी ही है? ... हे गौतम! वास्तव में वह ऐसी नहीं है। गंधमादन से जो सुगंध निःसृत होती है, वह कोष्ठपुटक की सुगंध से भी अधिक प्रिय यावत् मनोरम है। इसलिए यह वक्षस्कार गंधमादन नाम से अभिहित हुआ है। यहाँ गंधमादन संज्ञक अत्यधिक समृद्धिशाली देव निवास करता है, इस वक्षस्कार का यह गंधमादन नाम शाश्वत है। .. उत्तरकुरु : .... . (१०४) कहि णं भंते! महाविदेहे वासे उत्तरकुरा णामं कुरा पण्णता? गोयमा! मंदरस्स पव्ययस्स उत्तरेणं णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरस्थिमेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं उत्तरकुरा णामं कुरा पण्णत्ता, पाईणपडीणायचा उदीणदाहिणविच्छिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिया इक्कारस जोयणसहस्साई अट्ट य बायाले जोयणसए दोण्णि य एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खम्भेणंति। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईण-पडीणायया दुहा वनखारपव्वयं पुट्ठा, तंजहापुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा एवं पचत्विमिल्लाए जाव पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा तेवण्णं जोयणसहस्साई आयामेणंति, तीसे णं धणुं दाहिणेणं सहिँ जोयणसहस्साइं चत्तारि य अट्ठारसे जोयणसए दुवालस य एगणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं। उत्तरकुराए णं भंते! कुराए केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते? गोयमा! बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते, एवं पुव्ववणिया जच्चेव सुसमसुसमावत्तव्वया सच्चेव णेयव्वा जाव पउमगंधा १ मियगंधा २ अममा ३ सहा ४ तेयतली ५ सणिचारी ६। - भावार्थ - हे भगवन्! महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत उत्तरकुरु नामक क्षेत्र किस स्थान पर बतलाया गया है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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