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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
३०२०८ , योजन है। वह नीलवान् वर्षधर पर्वत के निकट ऊंचाई में ४०० योजन तथा भूमि में चार सौ कोस गहरा है। चौड़ाई में यह ५०० योजन है। उसके पश्चात् क्रमशः उसकी ऊँचाई
और गहराई वृद्धिंगत होती जाती है तथा चौड़ाई कम होती जाती है। इस प्रकार वह मंदर पर्वत के समीप पांच सौ योजन ऊंचा तथा पाँच सौ कोस गहरा हो जाता है। अन्ततः उसकी चौड़ाई अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी रह जाती है। इसका आकार हाथी दांत के समान है यह सम्पूर्णतः रत्नमय एवं उज्वल है। यह दोनों तरफ दो पद्मवर वेदिकाओं तथा दो वनखंडों से परिवेष्टित है।
गंधमादन वक्षस्कार पर्वत पर अत्यंत समतल एवं रमणीय भूमिभाग कहा गया है यावत् उसके शिखरों पर अनेक देव-देवियाँ निवास करते हैं।
हे भगवन्! गंधमादन वक्षस्कार पर्वत के कितने कूट प्रतिपादित हुए हैं? ___ हे गौतम! उसके सात कूट प्रतिपादित हुए हैं, वे इस प्रकार हैं - १. सिद्धायतन कूट २. गंधमादन कूट ३. गंधिलावतिकूट ४. उत्तरकुरु कूट ५. स्फटिक कूट ६. लोहिताक्ष कूट एवं ७. आनंदकूट।
हे भगवन्! गंधमादन पर्वत के ऊपर सिद्धायतन कूट किस स्थान पर कहा गया है? . हे गौतम! मंदर पर्वत के उत्तर-पश्चिम में, गंधमादन कूट के दक्षिण पूर्व में गंधमादन वक्षस्कार पर्वत पर सिद्धायतन कूट कहा गया है। यहाँ वर्णित इन सब कूटों का प्रमाण चुल्लहिमवान् पर्वत पर विद्यमान सिद्धायतन कूट के सदृश है। तीन कूट विदिशाओं-कोणवर्ती दिशाओं में कहे गए हैं। चौथा उत्तरकुरु कूट तीसरे के उत्तर-पश्चिम-वायव्य कोण में तथा पांचवें कूट के दक्षिण में है। अवशिष्ट तीन कूट उत्तर-दक्षिण श्रेणियों में विद्यमान है।
स्फटिककूट तथा लोटिताक्षकूट पर भोगंकरा तथा भोगवती संज्ञक दो दिक्कुमारी देवियाँ निवास करती हैं। शेष कूटों पर उन-उन कूटों के अनुरूप नामधारी देव रहते हैं। इन छहों कूटों पर इन इनके श्रेष्ठ प्रासाद हैं और विदिशाओं में राजधानियाँ हैं।
हे भगवन्! गंधमादन वक्षस्कार पर्वत का यह नाम किस प्रकार प्रख्यात हुआ?
हे गौतम! कूटे हुए यावत् पीसे हुए, उत्कीर्ण-विकीर्ण किए जाते हुए, परिभुक्त-अनुभूत किए जाते हुए यावत् कोष्ठपुटकों से निकलने वाले सौरभ के सदृश श्रेष्ठ, मनोज्ञ यावत् सुगंधि गंधमादन वक्षस्कार पर्वत से निकलती रहती है।
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