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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
राजा भरत ने अपने समस्त अवहेलनीय सगोत्रीय शत्रुओं का उच्छेद कर डाला, उन्हें मसल डाला, विजित कर डाला।
श्रेष्ठ चंदन चर्चितांग वक्ष स्थल पर हारों से सुशोभित, प्रीतिकर, उत्तम मुकुट सहित, उत्तम वस्त्र एवं आभूषणधारी, समस्त ऋतुओं में विकासमान पुष्पों की सुशोभन मालाओं से विभूषित मस्तक युक्त, उत्तम नाट्य प्रस्तुत करती हुई सुंदर नृत्यांगनाओं से घिरा हुआ, समस्त औषधि, सर्वरत्न, समस्त राजोचित उपकरण, सम्पूर्ण सिद्ध मनोरथ युक्त-आप्तकाम, शत्रुमान मर्दक, पूर्व जन्म में आचरित तपश्चरण के सुनिश्चित परिणाम-युक्त चक्रवर्ती राजा भरत मनुष्य जीवन के सुखों को भोगता रहा। .
सर्वज्ञत्व का प्राकट्य
. (७) तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता जाव ससिव्व पियदंसणे णरवई मजणघराओ पडिणिक्खमइ २ ता जेणेव
आयंसघरे जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ २ ता आयंसघरंसि अत्ताणं देहमाणे २ चिट्ठइ।
तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं विसुज्झमाणीहिं ईहापोहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स तयावरणिजाणं कम्माणं खएणं कम्मरय-विकिरणकरं अपुव्वकरणं पविट्ठस्स अणंते अणुत्तरे णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे, तए णं से भरहे केवली सयमेवाभरणा-लंकारं ओमुयइ २ ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ २ ता आयंसघराओ पडिणिक्खमइ २ त्ता अंतेउरमज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ २ त्ता दसहिं रायवरसहस्सेहिं सद्धिं संपरिवुडे विणीयं रायहाणिं मझमझेणं णिग्गच्छइ २ ता मज्झदेसे सुहंसुहेणं विहरइ २ ता जेणेव अट्ठावए पव्वए तेणेव उवागच्छइ २ ता अट्ठावयं पव्वयं सणियं २ दुरूहइ २ त्ता मेघघण
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