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तृतीय वक्षस्कार - राजतिलक
आभियोगिक देवों से यह सुनकर राजा भरत प्रसन्न एवं संतुष्ट हुआ यावत् पौषधशाला से प्रतिनिष्क्रांत होकर कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा - देवानुप्रियो ! शीघ्र ही आभिषेक्य हस्तिरत्न को तैयार करो। वैसा कर अश्व, गज यावत् चतुरंगिणी सेना को सुसज्ज कर मुझे सूचना दो यावत् कौटुंबिक पुरुषों ने राजा को कार्य सम्पन्नता की सूचना दी।
फिर राजा भरत स्नानगृह में प्रविष्ट हुआ यावत् अंजनगिरि पर्वत के शिखर सदृश हाथी पर सवार हुआ। इसके उपरांत आठ-आठ मंगल प्रतीक राजा के आगे-आगे चले। जैसा वर्णन विनीता राजधानी में प्रवेश के समय आया है। वैसा ही यहाँ निष्क्रमण के समय योजनीय है। यावत् वह वाद्यादि का आनंद लेता हुआ विनीता राजधानी के बीचोंबीच से निकला । फिर विनीता राजधानी के ईशानकोण में अभिषेक मंडप के पास आया। अभिषेक मण्डप के द्वार पर अभिषेक्य हस्तिरत्न को ठहराया और उससे नीचे उतरा तथा स्त्रीरत्न, बत्तीस सहस्र ऋतु कल्याणिकाओं, बत्तीस सहस्र जन पद कल्याणिकाओं बत्तीस-बत्तीस अभिनय क्रमोपक्रमों से निबद्ध बत्तीस सहस्र नाटक मण्डलियों से घिरा हुआ राजा भरत अभिषेक मण्डप में संप्रविष्ट हुआ। अभिषेक पीठ के पास आया, उसकी प्रदक्षिणा की और पूर्व दिशावर्ती त्रिसोपानमार्ग से होता हुआ, पूर्वाभिमुख होकर सिंहासनासीन हुआ। राजा भरत के पीछे-पीछे चलने वाले बत्तीस सहस्र राजा जहाँ अभिषेक मण्डप था, आए। वहाँ आकर उन्होंने मण्डप में प्रवेश किया। अभिषेक मण्डप की प्रदक्षिणा की। अभिषेक मंडप के उत्तरी त्रिसोपान मार्ग से राजा भरत के पास आए। हाथ जोड़कर अंजलि बद्ध होते हुए राजा भरत को जय-विजय शब्दों द्वारा वर्धापित किया तथा राजा भरत के न अधिक पास न अधिक दूर सुश्रूषा-राजा का वचन सुनने की इच्छा रखते हुए यावत् पर्युपासनारत होते हुए स्थित हुए ।
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इसके बाद सेनापतिरत्न यावत् सार्थवाह आदि समागत हुए । उनके आगमन का वर्णन पूर्ववत् है । केवल इतनी विशेषता है - वे दक्षिणदिशावर्ती त्रिसोपान मार्ग से अभिषेक पीठ पर आए यावत् राजा की सेवा में पर्युपासनारत हुए। तदनंतर राजा भरत ने आभियोगिक देवों को बुलाया और कहा देवानुप्रियो ! मेरे लिए महार्थ - स्वर्ण मणि रत्नमय, महार्घ-पूजा-प्रतिष्ठा सत्कारमय, महार्ह - महान् लोगों की प्रतिष्ठा के अनुरूप महाराज्याभिषेक की व्यवस्था करो । राजा भरत द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर आभियोगिक देव बहुत ही हर्षित एवं परितुष्ट हुए यावत् उत्तर पूर्व दिशा में गए एवं वैक्रिय समुद्घात द्वारा आत्मप्रदेशों को बाहर निकाला। जंबूद्वीप के
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